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________________ द्वितीय खण्ड संस्मरण | ७६ ५ क्या तुम्हे डर नहीं? गुरुदेव आदि सतवृद उत्तर प्रदेश को पार कर विहार प्रात के बीचो-बीच होते हुए पधार रहे थे। विहारी जनता यद्यपि भद्र एव सरलमना अवश्य है किन्तु धर्म एव सस्कृति के प्रति अज्ञ भी काफी है। ढोग पाखण्ड एव अध-विश्वास मानव के मन मन्दिर मे गहरी जड जमा वैठा है । यही कारण है कि अनार्य संस्कृति की तरह विहार प्रात मे भी दया धर्म की हीनता एव मद्य मास का प्रचार अधिक मात्रा मे दृष्टिगोचर होता है ।। जैसा कि मुनिवृ द चलते हुए 'वारहचट्टी' नामक गाव की सड़क पर से गुजर रहे थे किवही अर्थात् उसी सड़क के किनारे पर ही एक वचिक बकरे की बात करने की तैयारी मे था । मुनि मण्डल अब विल्कुल उसके निकट आ पहुंचे थे। इस तरह दयनीय दृश्य को देखकर गुरु प्रवर आदि का हृदय द्रवित हो उठा । एकदम जोशीली ललकार मे वोले-जरा ठहरो क्यो यह अधर्म कृत्य कर रहा है? क्या किसी अनुशासक का तुम्हें डर नही है ? मानवी परिधान मे दानवीय कुकृत्य, और वह भी राजमार्ग पर । जरा तुम्हें शर्म नही । मूक प्राणियो की इस तरह अपने स्वार्थों के लिए हत्या कर क्यो मानवता को कलकित कर रहे हो। __ ओज पूर्ण आवाज को सुनकर उस वधिक के हाथ थर-थर काप उठे। कपोत की तरह गिडगिडाने व फडफडाने लगा । छुरी हाथो से छूट पड़ी । बकरा भी हाथो से मुक्ति पा मुनियो के चरणो मे आ खडा हुआ । हो हल्ले के कारण अव खासी भीड जमा हो चुकी थी । जन कोलाहल को सुनकर वधिक का स्वामी मकान मे से बाहर आया । देखता है-पांच छ-श्वेत परिवान मे महात्मा एव बीसो अन्य न नारी चारो ओर खडे हैं। ___ महात्मा जी । हमे क्षमा करें। ऐसा कार्य सडक पर नही करें' आज दिन तक ऐसी नेक सलाह देने वाले हमे आप जैसे कोई नही मिले। अरे । तुम मानव बने हो और पेट-कल के लिए हमेशा मूक प्राणियो की हत्या | क्या दूसरा घधा रुजगार नही है ? तुम्हारे जैसे सपूतो से ही भारत माता पीडित है एव प्रकृति भी यदा-कदा प्रलय मचा रही है। वह कापता हुआ वोला-आप भगवान तुल्य हैं । इतना कोप न करें। मैंने वकरो की बहुत हत्या की और करवाई है। अव मैं कसम खा कर कहता हूं कि--यह धघा छोड दूंगा। इसलिए आप मुझे शाप देकर नही जावें, वरन हम खाक हो जायेंगे। यह बकरा आप की शरण में आ चुका है। इस कारण इसे अमर बनाकर गाव मे छोड देता हूँ। अथवा आप भले साथ ले जावें । मुझे कोई आपत्ति नहीं है। इस प्रकार उस बकरे को अभयप्रदान कर मुनिवृ द ने कदम आगे बढ़ाये । ६ हम न चोर न लुटेरे हैं डामर की सुदूर लम्वी सडक पर गुरुदेव आदि मुनि सघ पादयात्रा मे निमग्न थे । विहार प्रात मे शाकाहारी वस्तियां कही-कही पर मिलती हैं। और कही पर तो विल्कुल शाकाहारी का नामोनिशान भी नही । लगभग दस मील जितना मार्ग तय करने के पश्चात् साधकगण एक नन्हे से गांव में
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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