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________________ द्वितीय खण्ड सस्मरण | ७७ विचारो की दुनियां मे डोल रहा था । चितन की तरगे कभी धर्म पक्ष मे तो कभी ससार पक्ष मे हिलोरें मार रही थी। एक दिन स्वप्न मे आवाज आई कि-"कही दल-दल मे मत फंसना, कठिनता से सुनहरा अवसर हाय लगा है।" वस किसी की सलाह लिये विना मैंने दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया। उन्ही दिनो अर्थात् स० २०१० का चातुर्मास गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म० आदि ठाणा ६ का कलकत्ते मे था । मेरे माध्यम से ही 'हरसूद-कलकत्ते' के बीच चौमासे मे पत्रो का आदान-प्रदान हुआ करता था । वस्तुत मुझे भली प्रकार मालूम था कि-इन्ही सतियो के गुरु महाराज का चौमासा कलकत्ते मे है। उत्सुकता पूर्वक यदा-कदा मैं सती मण्डल से सन्त-स्वभाव सम्बन्धित परिचय पूछ भी लिया करता था। परिचय सन्तोषजनक मिलता रहा । तब गुरुप्रवर के पवित्र चरणो मे मैंने एक पत्र लिखा। ___"मैं हुजूर की पावन सेवा मे दीक्षा लेने के लिए आना चाहता हूँ। यद्यपि प्रकृति से वाकिफ न आप हैं और न मैं हूँ। आप मेरे लिए नये और आप के लिए मैं नया हूँ। तथापि जीवन पराग की सौरभ छिपी नहीं रहती है । आपके विमल व्यक्तित्व की महत यहाँ तक व्याप्त है । मुझे तो आपका ही शिष्यत्व स्वीकार करना है । मैं मारवाड राज्य का निवामी हूँ । अतएव शीघ्र प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा मे हूँ । सघ की तरफ से उत्तर दिलाने में विलम्ब न होने पावे । क्योंकि चौमासा काल पूर्ण होने आ रहा है। फिर मैं आपको कहाँ ढूढूगा । मुझे अतिशीघ्र निज भाग्य का निर्णय करना है। - दर्शनाभिलापी हरसूद मध्य प्रदेश रतनचन्द कोठारी __चातुर्माम पूर्ण होने के तीन दिन बाद एक लिफाफा मुझे मिला। जिसमे हृदय स्पर्शी निम्न भाव थे आप खुशी-खुशी से पधारें। कलकत्ते का स्थानकवासी जैन सघ आपका भावभीना स्वागत करेगा । आपकी पवित्र भावना को शतवार साधुवाद है। आपकी सफलता के लिए शासनदेव सहयोगी - बने । कुछ शर्ते निम्न प्रकार हैं। उन्हें शान्त दिमाग मे विचार कर एव अच्छी तरह पढकर फिर आगे कदम रखें (१) किसी प्रकार का जीवन मे लोभ-लालच न हो, - (२) जीवन मे अस्थिरता एव आकुल-व्याकुलता न हो। (३) किसी तरह की उदरस्थ धूर्तता- ठगाई-पाखण्डपना न हो। (४) एव पारिवारिक विघ्न-बाधा भी न हो, जिसके कारण बार-बार आपको जाने-आने की क्रिया करनी पडे, तो कृपया आप आने का कष्ट न करें। वही साधु-समुदाय बहुत हैं। वास्तविक मत्यता एव अन्तरात्मा की प्रौढ मजबूती के लिए सघ के द्वार सदैव खुले हैं। आप अवश्य कलकत्ते पधारें । अध्ययन करके अपने जीवन को खुव चमकावें । मुनि मण्डल ने सतीवृन्द को सुख-सन्देश एव आपको धर्म मदेश फरमाया है। भवदीय कार्तिक शुक्ला ७, मार्फत-श्री श्वे० स्था० जैन सघ . २७, पोलाक स्ट्रीट कलकत्ता प० किशनलाल भण्डारी
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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