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संस्मरण
१. वाणी का प्रभाव सम्वत् २००४ का चातुर्मास तपस्वी श्री छव्वालाल जी म. सा. एव गुरु प्रवर श्री प्रतापमल जी म. सा. आदि मुनिवरौ का विराट् नगर इन्दौर मे था । उन दिनो राजनैतिक क्षेत्र में भारी उग्रता छाई हुई थी । अग्रेजो की करतूतो ने अखण्ड भारत को हिंद और पाकिस्तान के रूप में विभक्त कर दिया था । एतदर्थ जन-जोवन मे पर्याप्त अस्थिरता एव भगदड मची हुई थी।
___ उन दिनो पजाब प्रान्त के काफी जैन परिवार भी अपने भावी जीवनोत्थान एव सुरक्षा की भावना से प्रेरित होकर इन्दौर शहर की ओर चले आये थे। आगत जन वन्धु सीधे जैन स्थानक मे आकर गुरुदेव के समक्ष आद्योपात घटित घटना कह सुनाने व स्थानीय कार्यकर्ताओ के समक्ष मकान, दुकान, भोजन समस्या को सामने रखते थे। उस समय मध्य प्रदेश मे राशन भी कहा था और तन मन-धन से शुभागत बन्धुओ का सम्मान-सत्कार एव सहयोग करना-करवाना भी अनिवार्य था।
विकट परिस्थिति को ध्यान में रखकर गुरु प्रवर ने अनुपम सूझ-बूझ से कार्य किया। सघसुविधा की दृष्टि से प्रारम्भिक तौर पर एक लघु योजना के माध्यम से स्थानीय कार्यकर्ताओ को मार्गदर्शन देते हुए कहा कि अभीहाल 'सेवासदन' (आयम्बिल खाता) योजना को आप सभी सर्वानुमति से कार्यान्वित करें ताकि यथाशक्ति आगत सभी जैन परिवार ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सके।
स्थानीय सघ के श्रद्धावान सदस्यगण ननुनच कुछ भी कहे विना गुरुप्रवर के अमूल्य वचनो को शिरोधार्य करते हैं । शुभ घडी पल मे सेवा सदन अर्थात् (आयबिल खाता) नामक सस्था की स्थापना हुई । आज इन्दौर का सेवा सदन मेरी दृष्टि मे राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, प्रान्तो मे यह एक पहली ठोस सस्था है जो साधर्मी सेवा के वरदान से उत्तरोत्तर प्रगतिशील एव पल्लवित-फलित होती जा रही है । जहाँ प्रति वर्ष समाज के हजारो बन्धु जन लाभान्वित होते हैं।"
इस रचनात्मक कार्य के लिए इन्दौर स्थानकवासी समाज का बच्चा-बच्चा गुरु भगवत के सामयिक कार्य कुशलता की मुक्त कठ से प्रशसा करता हुआ प्रतिवर्ष सश्रद्धा आप को याद करता है।
२. जोडने की कला गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म. सा०, प्र० श्री हीरालाल जी म. सा. आदि मुनि मण्डल सवत् २००८ का चौमासा राजधानी दिल्ली मे बिता रहे थे। जनता उपदेशामृत से अधिक लाभान्वित हो रही थी।
उन दिनो दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के आचार्य श्री सूर्यसागर जी म० व इसी समाज के आचार्य नेमिसागर जी म० का चौमासा भी दिल्ली के उपनगर मे था । अनेकों बार गुरु प्रवर श्री के एव सूर्य सागर जी म० सा० के मयुक्त व्याख्यान हो चुके थे । एतदर्थ दिगम्बर समाज गुरुदेव के माधुर्य व्यवहार