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१. सूत्रार्थ स्थितिकरण____ संघ की व्यवस्था के लिए प्राचार्य का कर्तव्य है सूत्र और अर्थ को स्थिर रखना, विवादास्पद विषयों का निश्चय करना, अथवा सूत्र और अर्थ की परम्परा को अविच्छिन रखना, अध्ययन की परम्परा को दृढ़ करना, अथवा सूत्र और अर्थ में श्रीसंघ को स्थिर करना और विवादास्पद विषयों का यथासम्भव समाधान करना। इसीलिये प्राचार्य को सूत्रार्यविद् कहा जाता है। २. विनय
छोटे, बडे, सबके साथ विनम्रता से, मधुरता से तथा निष्कपटता से व्यवहार करना प्राचार्य का दूसरा कर्तव्य
३. गुरुपूजा
रानिक अर्थात् अपने से बड़े स्थविरों की भक्ति करना और उनका मान-सम्मान करना । ४. शैक्ष-बहुमान
नवदीक्षित तथा शिक्षा ग्रहण करनेवाले छोटे साधुओं का भी बहुमान करना, जिससे उनके मन में प्राचार्य के प्रति श्रद्धा, विनय एवं भक्ति की वृद्धि हो । ५. दानपति को श्रद्धावृद्धि
श्रीसंघ की सेवा के उद्देश्य से या प्रभावना के उद्देश्य से दान देनेवाले की श्रद्धा एवं उत्साह को बढ़ाना प्राचार्य नमस्कार मन्त्र
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