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________________ समर्पण परम श्रद्धेय आचार्य-प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के कर-कमलों में सादर समर्पित मेरा यह इष्ट है आराध्य साध्य उद्दिष्ट है। अत: मेरा मानस जीवन भर के लिये इसमें समाविष्ट है। इसके मननात्मक जप से लेखन रूपी तप से जो भी लिख पाया हूं मनन के सिन्धु से रत्न जो लाया हूं। किसे करू समर्पित इन्हें ? सोचा, विचारा, पालिया मन ने तब चिन्तन का किनारा वहीं बैठ सोचा आनन्द और ऋषित्व के समन्वय रूप जिनके गुण हैं अनूप प्राचार्य आनन्द ऋषि के पावन कर-कमलों में जो श्रद्धा से तर्पित है वह ‘नमस्कार-मन्त्र' सादर समर्पित है। 'श्रमण'
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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