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ही साधु भी तपतेज एवं ऋद्धि प्रादि से देदीप्यमान होता है ।
३. जैसे अग्नि कूड़े-कचरे को भस्म कर देती है, वैसे ही साधु भी कर्मरूप कचरे को तप के द्वारा जला देता है।
४. जैसे अग्नि अंधकार का नाश करती है, वैसे ही साधु भी अज्ञान-अंधकार का नाश करके धर्म का उद्योत करता है।
५. जैसे अग्नि सोना-चांदी आदि धातुओं को शोध कर शुद्ध बना देती है, वैसे ही साधु भी भव्य जीवों को शिक्षामों द्वारा मिथ्यात्व आदि दोषो से रहित बना देता है।
६. जैसे अग्नि धातु और मैल को अलग-अलग कर देती है, वैसे ही साधु भी आत्मा और कर्म को अलग-अलग कर देता है।
७. अग्नि जैसे मिट्टी के कच्चे बर्तनों को पकाकर पक्का कर देती है, वैसे ही साधु भी शिष्यों एव श्रावकों को उपदेश देकर धर्म में दृढ़ बना देता है। ४. सागर
साधु सागर की तरह सदा गंभीर होता है । समुद्र, में, जो विशेषताएं हुआ करती हैं, उनसे मिलती-जुलती। विशेषताएं साधु में भी होती हैं, समुद्र अौर साधु दोतों में समान धर्म होने से साधु को शास्त्रकारों ने सात उपमानों से उपमित किया है।
१. जैसे सागर रत्नाकर कहलाता है और वह मणि १५०]
षष्ठ-प्रकाश