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के साथ तादात्म्य स्थापित करती है ऐसी दशा में अनेक का एक के साथ सम्बन्ध साधना मे भारी हो जाता है। जब सामूहिक जप किया जाता है-सामूहिक प्रार्थना की जाती है, तब व्यक्ति का 'प्रह' सर्वथा बिगलित हो जाता है, तब अनेक के साथ अनेक का सम्बन्ध विराटशक्ति के अवतरण के लिये उपयुक्त वातावरण उपस्थित कर देता है, अतः अखण्ड जप और सामूहिक साधना का प्रारम्भिक अवस्था में विशेष विधान है। इसी दशा को स्थविर-कल्पी दशा कहा जाता है । जंव प्रात्मा विशाल हो जाय, अनेक भव्य एव दिव्य आत्मानो के सान्निध्य को सहन करने में समर्थ हो जाय उस अवस्था में वैयक्तिक साधना की जाती है । वैयक्तिक साधना की उन्नततम अवस्था को ही 'जिनकल्प' कहा गया है।
बात तो ध्वनि अर्थात् विद्य त्-धारा के प्रवाह और नियन्त्रण की है। रशियन वैज्ञानिकों ने अब इस विद्युत् के फोटोग्राफ लेने वाले कमरे भी तैयार कर लिये है । इस विद्युत् प्रवाह के विविध रंगो द्वारा शरीर मे उत्पन्न होने वाले नाना प्रकार के रोगो और मानसिक विकृतियों का सूक्ष्म अध्ययन किया जा रहा है, जैसे कि आभामण्डल की नीलिमा शरीर के रोगो और मन की कलुषित भावनामो की सूचना देती है, विद्य त-धारा की लालिमा क्रोधावेश प्रादि का परिज्ञान कराती है। मै समझता हूं शरीर के
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