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णमो लोए सवसाहूर्ण
षष्ठ प्रकाश
साधुता की साधना करनेवाला महान् साधक साधु कहलाता है। प्रत्येक मानव किसी न किसी भौतिक सिद्धि की खोज में है, किन्तु प्रात्म-सिद्धि की पोर ध्यान उसो साधक का जाता है जो सम्यग्दृष्टि है । जिस में सम्यग्दर्शन का उद्भव हो चुका है, वही सम्यग्दृष्टि कहलाता है । मिथ्यात्व-मोहनीय और उसकी सहचारिणी सभी प्रकृतियों के क्षय, उपशम और क्षयोपशम से प्रात्मा में जो भाव-विशुद्धि होती है उसे सम्यक्दर्शन कहते है । सम्यग्दर्शन हो जाने पर प्रज्ञान का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और ज्ञान सूर्यवत् प्रकाशित हो जाता है। सम्यग्दर्शन का क्रमिक विकास
सभी भव्य जीवों में सम्यग्दर्शन की सत्ता विद्यमान है। जो कर्म-प्रकृतियां सम्यग्दर्थन की अभिव्यक्ति में वाधक हैं ममस्कार मन्त्र]
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