________________
३१८
३४१
वसुनन्दि-श्रावकाचार १००. श्रावकोको किन-किन कायोंके करनेका अधिकार नही है ...
३१२ १०१-ग्यारहवी प्रतिमाका उपस हार
३१३ १०२-निशिभोजनके दोषोंका वर्णन
३१४-३१७ १०३-निशिभोजनके परित्यागका उपदेश १०४-श्रावकोंको विनय, वैयावृत्त्य, कायक्लेश और पूजन-विधान यथाशक्ति करनेका उपदेश ३१६ १०५-विनयके पाँच भेद
३२० १०६-दर्शनविनयका स्वरूप
३२१ १०७-ज्ञानविनय का ,
३२२ १०८-चारित्रविनयका ,
३२३ । १०६-तपविनयका , ...
३२४ ११०-उपचारविनयके तीन भेद
३२५ १११-मानसिक उपचार विनयका स्वरूप
३२६ ११२-वाचनिक उपचार विनयका ,
३२७ ११३-कायिक उपचार विनयका ,
३२८-३३० ११४-उपचार विनयके प्रत्यक्ष परोक्षभेद ११५-विनयका फल ...
३३२-३३६ ११६-वैयावृत्त्य करनेका उपदेश
३३७-३४० ३१७ - वैयावृत्त्य करनेसे नि.शकित-संवेग आदि गुणोकी प्राप्ति होती है ११८-वैयावृत्त्य करनेवाला तप, नियम, शील, समाधि और अभयदान आदि सब कुछ प्रदान करता है ....
३४२ ११६-वैयावृत्त्य करनेसे इहलौकिक गुणोंका लाभ
३४३-३४४ १२०-वैयावृत्त्य करनेसे परलोकमें प्राप्त होनेवाले लाभोंका वर्णन '
३४५-३४६ १२१-यावृत्त्य करनेसे तीर्थकर पदकी प्राप्ति
३४७ १२२-वैयावृत्त्यके द्वारा वसुदेवने कामदेवका पद पाया
३४८ १२३-वैयावृत्त्य करनेसे वासुदेवने तीर्थङ्कर नामकर्मका बन्ध किया
३४६ १२४-वैयावृत्त्यको परम भक्तिसे करनेका उपदेश
३५० १२५-आचाम्ल, निर्विकृति, एकस्थान आदि कायक्लेश करनेका उपदेश
३५१-३५२ १२६-पंचमी व्रतका विधान
३५३-३६२ १२७-रोहिणी व्रतका विधान ,
३६३-३६५ १२८-अश्विनी व्रतका विधान
३६६-३६७ १२६-सौख्य सम्पत्ति ब्रतका विधान
३६८-३७२ (१३०-नंदीश्वरपंक्ति ब्रतका विधान
३७३-३७५ १३१-विमानपंक्ति ब्रतका विधान
३७६-३७८ १.३२-कायक्लेशका उपसंहार
३७६ १३३-पूजन करनेका उपदेश १३४-पूजनके छह भेद
३८१ १३५-नामपूजाका स्वरूप
३८२ १३६ स्थापना पूजाके दो भेदोंका वर्णन ...
३८३-३८४ । १३७-इस हुंडावसर्पिणी कालमें असद्भावस्थापनाका निषेध ...
३८५ १३८-सद्भावस्थापनामें कारापक आदि पांच अधिकारोंका वर्णन
३८६
३८०