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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार बारहवे तीर्थ कर सवारी शारीरिक रोग वासुपुज्ज वाहण वाहि विइन विउण १६४ २३६ ३१० दूसरा वासुपूज्य वाहन व्याधि द्वितीय द्विगुण विपुल विपुलगिरि विगूर्वण वियोग ३५६ ३६५ विउल दुगुना अधिक, बहुत विपुलाचल विक्रिया ५१२ विछुडना ३१, १७९ २१३ ७१ विउलगिरि विउव्वण (विप्रोग विनोय विकत्तण विक्कय विकिंचण विचिट्ठ विजय विजइभ विजण विज्जा विजाविञ्च विण विणिवाय विणीय *विणेऊण विणोय विपणाण ४६२ ४३४ ३३५ ३८६ विकर्तन विक्रय व्याकुंचन विचेष्ट विनय विजयी व्यञ्जन विद्या वैयावृत्य विनय विनिपात विनीत विनीय विनोद विज्ञान विष्णु वितत विस्तरयित्वा कतरना बेचना विवेचन, दूर करना नाना चेष्टाएँ कल्पातीत विमान-विशेष विजेता वर्ण, अक्षर, पकवान, मशा आदि चिह्न, शास्त्र-ज्ञान सेवा-शुश्रूषा नम्रता, भक्ति विनाश, प्रणिपात नम्र, विनय-युक्त व्यतीत कर मनोरजन विशेष ज्ञान कृष्ण, देवता विशेष वाद्यका स्वर विशेष विस्तार करके जानकार दूसरा ५०६ ५०६ २२४ विण्ड २५३ २५७ विप्र mm PM विदिशा वितय वित्थारिऊण विदण्णू विदिय विदिस विप्प विप्पोय विप्फुरंत विब्भम विभिय विरयाविरय विरह विलक्ख विलवमाण विलप्पमाण द्वितीय विदिग विप्र विप्रयोग विस्फुरन्त विभ्रम विस्मित विरताविरत ८४ २६५ ४५६ ४१४ ब्राह्मण वियोग स्फुरायमान विलास, विपरीत ज्ञान चित्त-भ्रम, आश्चर्यको प्राप्त संयतासंयत वियोग लज्जित or GI KI विरह विलक्ष विलपमान विलाप करता हुआ १६३
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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