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प्रतिष्ठा-विधान
१२९ जंबीर (नीबू विशेष), मोच (केला), दाडिम (अनार), कपित्थ (कवीट या कैया), पनस, नारियल, हिताल, ताल, खजर, निम्ब, नारंगी, अचार (चिरोंजी), पूगीफल (सुपारी), तेन्दु, आँवला, जामुन, विल्वफल आदि अनेक प्रकारके सुगंधित, मिष्ट और सुपक्व फलोंसे जिन-चरणोंके आगे रचना करे अर्थात् पूजन करे। ॥४४०-४४१॥
अट्टविहमंगलाणि य बहुविहपूजोवयरणदग्वाणि ।
धूवदहणाइतहा जिणपूयथं वितीरिज्जा ।।४४२॥ आठ प्रकारके मंगल-द्रव्य, और अनेक प्रकारके पूजाके उपकरण द्रव्य, तथा धूप-दहन (धूपायन) आदि जिन-पूजनके लिए वितरण करे ॥४४५।।
एवं चलपडिमाए ठवणा भणिया थिराए एमेव । णवरिविसेसो आगरसुद्धिं कुज्जा सुठाणम्मि ॥४४३॥ चित्तपडिलेवपडिमाए दप्पणं दाविऊण पडिबिंबे। तिलयं दाऊण तो मुहवत्थं दिज्ज पडिमाए ॥४४४॥ आगरसुद्धिं च करेज्ज दप्पणे अह व अण्णपडिमाए ।
एत्तियमेतविसेसो सेसविही जाण पुव्वं व॥४४५॥ इस प्रकार चलप्रतिमाकी स्थापना कही गई है, स्थिर या अचल प्रतिमाकी स्थापना भी इसी प्रकार की जाती है। केवल इतनी विशेषता है कि आकरशुद्धि स्वस्थानमे ही करे। (भित्ति या विशाल पाषाण और पर्वत आदिपर) चित्रित अर्थात् उकेरी गई, प्रतिलेपित अर्थात् रंग आदिसे बनाई या छापी गई प्रतिमाका दर्पणमे प्रतिबिम्ब दिखाकर और मस्तकपर तिलक देकर तत्पश्चात् प्रतिमाके मुखवस्त्र देवे । आकरशुद्धि दर्पणमें करे अथवा अन्य प्रतिमामें करे । इतना मात्र ही भेद है, अन्य नहीं। शेषविधि पूर्वके समान ही जानना चाहिए ॥४४३-४४५।।
एवं चिरंतणाणं पि कहिमाकडिमाण पडिमाणं ।
जं कीरइ बहुमार्ण ठवणापुज्ज हितं जाण ॥४४६॥ इसी प्रकार चिरन्तन अर्थात् अत्यन्त पुरातन कृत्रिम और अकृत्रिम प्रतिमाओंका भी जो बहुत सम्मान किया जाता है, अर्थात् पुरानी प्रतिमाओंका जीर्णोद्धार, अविनय आदिसे रक्षण, मेला, उत्सव आदि किया जाता है, वह सब स्थापना पूजा जानना चाहिए ॥४४६॥
जे पुन्वसमुट्ठिा ठवणापूयाए पंच अहियारा।
चत्तारि तेसु भणिया अवसाणे पंचमं भणिमो ॥४४७॥ . स्थापना-पूजाके जो पांच अधिकार पहले (गाथा नं० ३८९ में) कहे थे, उनमेसे आदि के चार अधिकार तो कह दिये गये है, अवशिष्ट एक पूजाफल नामका जो पंचम अधिकार है, उसे इस पूजन अधिकारके अन्तमे कहेगे ॥४४७॥
द्रव्य-पूजा दव्वेण य दव्वस्स य जा पूजा जाण दवपूजा सा।
दब्वेण गंध-सलिलाइपुब्वभणिएण कायव्वा ॥४४८॥ जलादि द्रव्यसे प्रतिमादि द्रव्यकी जो पूजा की जाती है, उसे द्रव्य पूजा जानना चाहिए। वह द्रव्यसे अर्थात् जल-गंध आदि पूर्व में कहे गये पदार्थ-समूहसे (पूजन-सामग्रीसे) करना चाहिए ॥४४८॥ १ झबभूयाणाईहि। २ म. ब. पूयहूँ। ३ ब बिंबो।
जलगंधादिकैव्यैः पूजनं द्रव्यपूजनम् । . द्रव्यस्याप्यथवा पूजा सा तु द्रव्यार्चना मता ॥२१६॥-गुण० श्रा०