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वसुनन्दि-श्रावकाचार . जहांपर हरित त्वक् (छाल) पत्र, प्रवाल, कंद, फल, बीज, और अप्रासुक जल त्याग किया जाता है, वह सचित्त-विनिवृत्तिवाला पांचवां प्रतिमास्थान है ॥ २९५ ।।
रात्रिभुक्तित्यागप्रतिमा मण-वयण-काय-कय-कारियाणुमोएहिं मेहुणं णवधा ।
दिवसम्मि जो विवजइ गुणम्मि सो सावो छट्ठो॥२६६।। [१] जो मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना, इन नौ प्रकारोंसे दिनमे मैथुनका त्याग करता है, वह प्रतिमारूप गुणस्थानमे छठा श्रावक है, अर्थात् छठी प्रतिमाधारी है ॥२९६॥
ब्रह्मचर्यप्रतिमा पुव्वुत्तणवविहाणं पि मेहुणं सव्वदा विवज तो। .
इस्थिकहाइणिवित्तो' सत्तमगुणवभयारी सो ॥२९७॥[२] __ जो पूर्वोक्त नौ प्रकारके मैथुनको सर्वदा त्याग करता हुआ स्त्रीकथा आदिसे भी निवृत्त हो जाता है, वह सातवें प्रतिमारूप गुणका धारी ब्रह्मचारी श्रावक है ॥ २९७ ॥
आरम्भनिवृत्तप्रतिमा ज किंचि गिहारमं बहु थोग वा सया विवजह ।
आरभणियत्तमई सो अट्टमु सावनो भणिो ॥२९॥[३] जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृहसम्बन्धी आरम्भ होता है, उसे जो सदाके लिए त्याग करता है, वह आरम्भसे निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा आरम्भत्यागी आठवां श्रावक कहा गया है ॥२९८ ।।
परिग्रहत्यागप्रतिमा मोत्तण वत्थमेत परिग्गहं जो विवज्जए सेसं ।
तत्थ वि मुच्छं ण करेइ जाणइ सो सावो णवमो ॥२९९।।[४] जो वस्त्रमात्र परिग्रहको रखकर शेष सब परिग्रहको छोड़ देता है और स्वीकृत वस्त्रमात्र परिग्रहमे भी मूर्छा नही करता है, उसे परिग्रहत्यागप्रतिमाधारी नवां श्रावक जानना चाहिए ॥ २९९ ॥
अनुमतित्यागप्रतिमा पुट्ठो वाऽपुट्ठो वा णियगेहि परेहिं च सगिहकजमि । अणुमणणं जो ण कुणइ वियाण सो सावनो दसमो ॥३००।[4]
१. किरियाणु०। २ ब. सव्वहा । ३ म. ब. शियतो। ४ म. थोवं ।
[1]स दिवा-ब्रह्मचारी यो दिवा स्त्रीसंग त्यजेत् । [२] स सदा ब्रह्मचारी यः स्त्रीसंग नवधा त्यजेत् ॥७९॥ [३] सः स्यादारम्भविरतो विरमेद्योऽखिलादपि ।।
पापहेतोः सदाऽम्भारसेवाकृष्यादिकात्सदा ॥१०॥ [0].निर्मूच्र्छ वस्त्रमात्रं यः स्वीकृत्य' निखिलं त्यजेत् ।
बाझं परिग्रह स स्याद्विरक्तस्तु परिग्रहात् ॥११॥ [५] पृष्टोऽपृष्टोऽपि नो दत्तेऽनुमतिं. पापहेतुके।
ऐहिकाखिलकायें योऽनुमतिविरतोऽस्तु सः ॥१२॥-गुण० श्राव०