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वसुनन्दि-श्रावकाचार चलाने का अनधिकार प्रयास किया है। अतएव चरणानुयोग के विशेष अभ्यासी विद्व जन मेरे इस प्रयास को सावकाश अध्ययन करेंगे और प्रमादवश रह गई भूलों से मुझे अवगत करावेंगे, ऐसी विनम्र प्रार्थना है।
मैं भारतीय-ज्ञानपीठ काशी के अधिकारियों का आभारी हूँ कि जिन्होने इस ग्रन्थ को अपनी ग्रन्थमाला से प्रकाशित करके मेरे उत्साह को बढ़ाया है। मेरे सहाध्यायी श्री० पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने प्रस्तावना के अनेक अंशों को सुना और आवश्यक परामर्श दिया, श्री पं० दरबारीलाल जी न्यायाचार्य देहली ने प्रति मिलानमे सहयोग दिया, पं० राजाराम जी और पं० रतनचन्द्र जी साहित्यशास्त्री मड़ावरा (झासी) ने प्रस्तावना व परिशिष्ट तैयार करनेमे। श्री पं० पन्नालालजी सोनी ब्यावर, बा० पन्नालालजी अग्रवाल देहली और श्री रतनलालजी धर्मपुरा देहलीके द्वारा मूल प्रतियाँ उपलब्ध हुई, इसके लिए मैं सर्व महानुभावोंका आभारी हूँ।
डॉ० उपाध्यायने कुछ और भी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ संशोधन एव परिवर्द्धनके लिए दी थीं। किन्तु पहले तो लगातार चार मास तक पत्नीके सख्त बीमार रहनेसे न लिख सका। पीछे उसके कुछ स्वस्थ होते ही पच्चीसवर्षीय ज्येष्ठ पुत्र हेमचन्द्रके ता० ७-६-५१ को सहसा चिर-वियोग हो जानेसे हृदय विदीर्ण और मस्तिष्क शून्य हो गया। अब लम्बे समय तक भी उन्हें पूरा करनेकी कल्पना तक नहीं रही। फलतः यही निश्चय किया, कि जैसा कुछ बन सका है, वही प्रकाशनार्थ दे दिया जाय । विद्वजन रहीं त्रुटियोको सस्नेह सूचित करेंगे, ऐसी आशा है। मैं यथावसर उनके परिमार्जनार्थ सदैव उद्यत रहेगा।
साढूमल, पो० मड़ावरा) . झाँसी (उ० प्र०)
३०-६-५१
विनम्र
हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री, न्यायतीर्थ
प्रकाशन-व्यय
७६०॥)। कागज २२x२६%२८ पौड ३३.रीम ११०२) छपाई ४॥) प्रति पृष्ठ ५५०) जिल्द बँधाई
५०) कवर कागज १००) कवर डिजाइन तथा ब्लाक ६०) कवर छपाई
४४०) सम्पादन पारिश्रमिक ३००) कार्यालय व्यवस्था प्रूफ संशोधनादि ३५०) भेंट आलोचना ७५ प्रति
७५) पोस्टेज ग्रंथ भेट भेजनेका २५०) विज्ञापन ११२५) कमीशन २५ प्रतिशत
५१६२॥)। कुल लागत १००० प्रति छपी । लागत एक प्रति ५-)॥
मूल्य ५) रुपये