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प्राकृत साहित्य का इतिहास त्याग कर पाँच महाव्रत स्वीकार किये । तेंतीसवें उद्देशक में माहण (बंभण) कुंडग्गाम के ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानंदा ब्राह्मणी का उल्लेख है। महावीर के माहणकुंडग्गाम में समवसृत होने पर ऋषभदत्त और देवानंदा उनके दर्शन के लिये गये। महावीर को देखकर देवानंदा के स्तनों में से दूध की धारा बहने लगी। यह देखकर गौतम ने इस संबंध में प्रश्न किया। महावीर ने उत्तर दिया कि देवानंदा उसकी असली माता है और वे उनके पुत्र हैं, पुत्र को देखकर माता के स्तनों में दूध
आना स्वाभाविक है। अन्त में दोनों ने महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। माहणकुंडग्गाम के पश्चिम में खत्तियकुंडग्गाम था। यहाँ महावीर की ज्येष्ठ भगिनी सुदर्शना का पुत्र और उनको कन्या प्रियदर्शना का पति जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह महावीर के दर्शन करने गया और उनके मुख से निग्रंथप्रवचन का श्रवण कर माता-पिता की अनुमतिपूर्वक उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। कुछ समय बाद महावीर के साथ उसका मतभेद हो गया और उनसे अलग होकर उसने अपना स्वतंत्र मत स्थापित किया | ग्यारहवें शतक में अनेक वनस्पतियों की चर्चा है। इस शतक के नौवें उद्देशक में हस्तिनापुर के शिवराजर्षि का उल्लेख है। इन्होंने दिशाप्रोक्षक तापसों की दीक्षा ग्रहण की थी, आगे चलकर महावीर ने इन्हें अपना शिष्य बनाया । ग्यारहवें शतक में रानी प्रभावती के वासगृह का सुंदर वर्णन है। रानी स्वप्न देखकर राजा से निवेदन करती है। राजा अष्टांगनिमित्तधारी स्वप्नलक्षण-पाठक को बुलाकर उससे स्वप्नों का फल पूछता है। उसे प्रीतिदान से लाभान्वित करता है। तत्पश्चात् नौ मास व्यतीन होने पर रानी पुत्र को जन्म देती है। राज्य में पुत्रजन्म उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बारहवें शतक के दूसरे उद्देशक में कौशांबी के राजा उदयन की माता मृगावती और जयंती आदि श्रमणोपासिकाओं का उल्लेख है। मृगावती और जयंती ने महावीर के पास उनका धर्मोपदेश श्रवण किया। जयंती ने महावीर से अनेक