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समवायांग और आठ प्रकार के आयुर्वेद' का उल्लेख है। महावीर द्वारा दीक्षित आठ राजाओं और कृष्ण की आठ अग्रमहिषियों का नामोल्लेख है। नौवें अध्ययन में नवनिधि और महावीर के नौ गणोंगोदास, उत्तरबलिस्सह, उद्देह, चारण, उद्दवातित, विस्सवातित, कामढिय, माणव और कोडित के नाम हैं। दसवें अध्ययन में दस प्रकार की प्रव्रज्या का प्ररूपण है । स्वाध्याय न करने के काल का निरूपण किया गया है। दस महानदियों, तथा चंपा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्य, मिथिला, कौशांबी और राजगृह नामकी दस राजधानियों के नाम गिनाये गये हैं। दस चैत्य वृक्षों में आसत्थ, सत्तिवन्न, सामलि, उंबर, सिरीस, दहिवन्न, वंजुल, पलास, वप्प और कण्णियार को गिनाया है । दृष्टिवाद सूत्र के दस नाम गिनाये हैं । दस दशाओं में कम्मविवाग, उवासग, अंतगड, अणुत्तरोववाय, आयार, पण्हवागरण, बंध, दोगिद्धि, दीह और संखेविय को गिनाया है, इन आगमों के अवान्तर अध्ययनों का नामोल्लेख है। अंतगड, अणुत्तरोक्वाय, आचार, पण्हवागरण, दोगिद्धि तथा दीह आदि दशाओं में ये अध्ययन इसी रूप में उपलब्ध नहीं होते, जिसका मुख्य कारण टीकाकार ने आगमों में वाचना-भेद का होना बताया है। दस आश्चर्यों में महावीर के गर्भहरण की घटना और स्त्री का तीर्थकर होना गिनाया गया है।
समवायांग जैसे स्थानांग में एक से लगाकर दस तक जीव आदि के स्थानों का प्ररूपण है, इसी प्रकार इस सूत्र में एक से लगाकर
१. कुमारभृत्य, कायचिकित्सा, शालाक्य, शल्यहत्या, जंगोली (विषविघाततंत्र ), भूतविद्या, क्षारतंत्र (वाजीकरण), रसायन । तथा देखिये अंगविज्जा, अध्याय ५० ।
२. दीघनिकाय के महापरिनिव्वाण सुत्त में चंपा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशांबी और वाराणसी नाम के महानगरों का उल्लेख है।