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प्राकृत साहित्य का इतिहास
आकाशरूपी समुद्र में शुभकिरणों से युक्त, रात्रिरूपी तट में लग्न तथा स्फुट और विघटित मेधरूपी सीपी के संपुट में से प्रकीर्ण, ऐसा तारे रूपी मोनियों का समूह शोभित हो रहा है । ( रूपक अलंकार का उदाहरण )
सोह व लक्खणमुहं वणमाल व्व विअर्ड हरिवइस्स उरं । favor पवनतनयं आण व्व बलाइ से वलग्गए दिट्ठी ॥
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( काव्या० पृ० ३४६, ५१७; सेतु० १, ४८; सं० क० ४, १९ ) राम की दृष्टि शोभा की भांति लक्ष्मण के मुख पर वनमाला की भाँति सुग्रीव के विकट वक्षस्थल पर, कीर्ति की भाँति हनुमान पर और आज्ञा की भाँति सेनाओं पर जा गिरी। (मालोपमा अलंकार का उदाहरण )
संजीवणोसहिम्मिव सुअस्स रक्खेइ अणण्णवावारा | सासू णवव्भ दंसणकण्ठागअजीविअं सोहम् ॥ (सं० कं०५, २६७; गा० स० ४, ३६ ) नूतन मेघों को देखकर कंठगत प्राणवाली अपनी पतोहु को अपने पुत्र की संजीवनी औषधि समझ, सब कुछ छोड़कर सास उसकी रक्षा में तत्पर है । ( हेतु अलंकार का उदाहरण ) संहअचक्कवाअजुआ विअसिअकमला सुणालसंच्छष्णा । वावी वहु व रोअणविलित्तथणआ सुहावेइ ॥
(स० कं० १, ३६ काव्या०, पृ० २०५, २१३ ) गोरोचना से विलिप्त स्तनयुगल धारण करती हुई वधू की भांति चक्रवाक के युगलवाली, विकसित कमलवाला ( वधू के पक्ष में नेत्र ) और कमलनाल से युक्त ( वधू के पक्ष में बाहु ) वापी सुख देती है । ( न्यून उपमा का उदाहरण ) हरिसुल्लावा कुलवालिआणं लज्जाकडच्छिए सुरए ।
कंठभंतरभमिआ अहरे चिअ हुरुहुराअंति ॥ ( शृङ्गार० ५४, ४) लज्जा से कदर्थित सुरत के समय कंठ के भीतर भ्रमण करने वाले कुलबालिकाओं के हर्षोल्लास मानो अधर के ऊपर घूर घूर कर रहे हैं ।
हसिअमविआरमुद्धं भमिअं विरहिअविलाससुच्छाअम् । भणिअं सहावसरलं धरणाण घरे कलत्ताणम् ॥ ( दशरूपक प्र० २, पृ० ९६ ) भाग्यवान व्यक्तियों के घरों की स्त्रियाँ स्वाभाविक मुग्ध हंसी हंसती हैं, उनकी चेद्रायें विलास से रहित होती हैं और बोलचाल उनकी स्वभाव से सरल होती है ।
हसिआई समंसलकोमलाई वीसंभकोमलं वअणं । सवभावकोमलं पुलइअं च णमिमो सुमहिलाणं ॥
(स० कं० ५,३७४ ) श्रेष्ठ महिलाओं के गंभीर और कोमल हास्य, विश्वस्त और कोमल वचन और सद्भावपूर्ण कोमल रोमांच को हम नमस्कार करते हैं।
( उत्तमा नायिका का उदाहरण )