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प्राकृत साहित्य का इतिहास निर्ग्रथिनियों के तीन प्रकार के वस्त्र और पात्रों का उल्लेख है। वैदिक शास्त्रों में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद और कथाओं में अर्थ, धर्म और काम की चर्चा है। पंडक (नपुंसक ), वातिक, क्लीब, ऋणपीड़ित, राजापकारी, दास आदि को दीक्षा के अयोग्य बताया है।' चौथे अध्ययन में सर्वप्राणातिपातवेरमण, सर्वमृषावावेरमण, सर्वअदत्तादानवेरमण, सर्वबहिद्धादानवेरमण' को चातुर्याम धर्म कहा है। चार पन्नत्तियों में चंदपन्नत्ती, सूरपन्नत्ती, जंबुद्दीवपन्नत्ती और दीवसागरपन्नत्ती का तथा चार प्रकार के हाथी, चार नौकर, चार विकथा (स्त्री, भक्त, देश, राज) और चार महाप्रतिपदाओं ( चैत्र, आषाढ़, आश्विन और कार्तिक की प्रतिपदाओं ) का उल्लेख है । आजीवकों के चार प्रकार के कठोर तप का और चार हेतुओं में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम का उल्लेख है । तत्पश्चात् चार तीर्थिक, चार प्रव्रज्या, चार
1. विनयपिटक के अन्तर्गत महावग्ग में उपसंपदा और प्रव्रज्या के प्रकरण में नपुंसक, दास और ऋणधारी आदि को दीक्षा के अयोग्य
२. बहिर्दा-मैथुनं परिग्रहविशेषः आदानं च परिग्रहः तयोर्द्वन्द्वैकरवमथवा आदीयत इत्यादानं-परिग्राह्यं वस्तु तच्च धर्मोपकरणमपि भवतीत्यत आह. बहिस्तात् धर्मोपकरणाद् बहिर्यदिति, इह च मैथुनं परिग्रहेऽन्तर्भवति । ४. १.टीका।
३. हाथियों के लिये देखिये सम्मोहविनोदिनी अटकथा, पृ० ३९७ ।
४. याज्ञवल्क्यस्मृति (प्रकरण १४, पृ० २४९) में अनेक प्रकार के दासों का उल्लेख है । ग्रियर्सन ने बिहार पेजेन्ट लाइफ (पृ०३१५) में मजूर, जन, बनिहार, कमरिया, कमियाँ, चाकर, बहिया और चरवाह ये नौकरों के प्रकार बताये हैं।
५. उग्रतप, घोरतप, घृतादिरसपरित्याग (रसनिज्जूहणया), और जिह्वेन्द्रियप्रतिसंलीनता। जैनों के तप से इनकी तुलना की जा सकती है। बौद्धों के नंगुटजातक में भी आजीवकों की तपस्या का उल्लेख है।