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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७६५ मुहपेच्छओ पई से सा वि हु पिअरूअदंसणुम्मइआ। दो वि कअत्था पुहविं अपुरिसमहिलं ति मण्णन्ति ॥
(स० कं० ५, २८०; गा० स० ५,९८) मुख को देखते रहनेवाला पति और पति के सुन्दर रूप देखने में उन्मत्त पत्नी ये दोनों ही बड़भागी हैं और वे समझते हैं कि इस पृथ्वी पर वैसा और कोई पुरुष और स्त्री नहीं है।
मुहविज्झाविअपईवं ऊससिअणिरुद्धसंकिउल्लावं । सवहसअरक्खिओढें चोरिअरमिअं सुहावेइ॥
(शृंगार० ५४,२७ गा०स०४,३३) जिसमें दीपक को मुँह से बुझा दिया है, उच्छ्वास और शंकित उल्लाप बन्द कर दिया है, सैकड़ों शपथ देकर ओठ को सुरक्षित रक्खा है, ऐसा चोरी-चोरी रमण कितना सुख देता है! ..
मोहविरमे सरोसं थोरत्थणमण्डले सुरवहणम् । जेग करिकुम्भसंभावणाइ दिछी परिहविआ ॥
(स० के० ३, १०८) मोह के शान्त होने पर जिसने रोषपूर्वक हाथियों के गण्डस्थल की संभावना से सुरवधुओं के स्थूल स्तनमंडल पर दृष्टि स्थापित की।
(भ्रांति अलङ्कार का उदाहरण) मंगलवल जी व रक्खिरं जं पउत्थवइआइ। पत्तपिअदंसणूससिअबाहुलइआइं तं भिण्णम् ॥
(स० के० ५. १९०) प्रोषितपतिका ने जिस मंगलकंकण की अपने जीवन की भांति रक्षा की थी वह प्रिय के दर्शन से उच्छवसित बाहुओं में पहना जाकर टूट गया !
मंतेसि महमहपण सन्दाणेसि तिदसेसपाअवरअणम् । ओज(उज्झ)सु मुद्धसहावं सम्भावेसु सुरणाह! जाअवलोअम् ॥
(स०के०४, २३५) हे इन्द्र ! यदि तू कृष्ण के प्रति प्रेम स्वीकार करता है तो देवों को पारिजात देने में अपने मुग्ध स्वभाव का त्याग कर, और यादवों को प्रसन्न कर।।
(भाविक अलङ्कार का उदाहरण) रइअमुणालाहरणो णलिणिदलत्थइअपीवरत्थणअलसो। वहइ पिअसंगमम्मिवि मअणाअप्पप्पसाहणं जुवइजणो॥
(स० के०४, १९१) जिन्होंने मृणाल को आभूषण बनाया है और कमलिनियों के पत्तों से पीन स्तनकलश को आवृत किया है, ऐसी युवतियाँ प्रिय के सङ्गम के समय भी कामदेव की उत्कंठा के लिये अलङ्कार धारण करती है। (परिकर अलङ्कार का उदाहरण )