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अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७४७ सुगंध से परिपूर्ण और स्वयं लाई हुई देवों की पुष्पमाला को, प्रणयिनी के हृदय को कष्ट पहुँचाने वाले कृष्ण ने बिना माँगे ही रुक्मिणी को दे दी।
(प्रतिनायिका का उदाहरण) तं तिअसबन्दिमोक्खं समत्तलोअस्स हिअअसल्लुद्धरणम् । सुणह अणुरायइण्हं सीयादुक्खक्खयं दसमुहस्स वहम् ॥
(काव्या० पृ० ४५६, ६१२; सेतुबन्ध १, १२) बंदी किए हुए देवताओं को छुटकारा देने वाले, समस्त लोक के हृदयों में से शल्य को निकालने वाले, (सीता के प्रति राम के ) अनुराग के चिह्न रूप तथा सीता के दुख का हरण करने वाले ऐसे रावणवध को सुनो।
तं दइआचिण्णाणं जम्मि वि अंगम्मि राहवेण ण णिमि। सीआपरिमटेण व ऊढो तेणवि निरन्तरं रोमञ्चो॥
(स० के० ४, २२३, सेतुबंध १, ४२) उस प्रिया के चिह्न (मणि) को रामचन्द्र ने जिस अंग पर नहीं रखा वह भी मानों सीता द्वारा चारों ओर से स्पृष्ट होकर पुलकित हो उठा।
(अतिशयोक्ति अलङ्कार का उदाहरण) तं पुलइअं पि पेच्छइ तं चिअ णिज्झाइ तीअ गेणहइ गोत्तं । ठाइअ तस्स समअणे अण्णं वि विचिंतअम्मि स चिअ हिअए॥
(स० के०५,३३६) हृदय में किसी अन्य का विचार करते हुए, वह पुलकित हुई उसी नायिका को देखता है, उसी का ध्यान करता है, उसी का नाम लेता है और वही उसके हृदय में वास करती है।
तंबमुहकआहोआ जइ जइ थणआ किलेन्ति कुमरीणम् । तह तह लद्धावासोव्व वम्महो हिअअमाविसइ ।
(स० के० ५,३३२) विस्तार वाले कुमारियों के ताम्रमुख स्तन जैसे-जैसे लांति उत्पन्न करते हैं, वैसे-वैसे मानो कामदेव स्थान पाकर हृदय में प्रवेश करता है।
(यौवनज का उदाहरण) तं सि मए चूअंकर ! दिण्णो कामस्स गहिदधणुअस्स । जुवइमणमोहणसहो पञ्चब्भहिओ सरो होहि ॥
(स० कं० २,५; अ० शाकुन्तल ६,३) हे आम्रमंजरी! हाथ में धनुष लेने वाले कामदेव को मैंने तुझे दिया है, अब तू युवतियों के मन को मोहित करने में समर्थ पाँच से अधिक बाणरूप बन जा ( कामदेव को पंचशर कहा गया है)। (शुद्ध शौरसेनी का उदाहरण )
थोआरूढमहुमआ खणपम्हहावराहदिण्णुल्लावा। हसिऊण संठविजइ पिएण संभरिअलजिआ कावि पिआ॥
(स० के० ५, ३२१)
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