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प्राकृत साहित्य का इतिहास कालक्खरदुस्सिक्खिअ बालअ! रे लग्ग मज्झ कंठम्मि । दोण्ह वि जरअणिवासो सम जइ होइ ता होउ ॥
(स० कं०४, ११२) . काले अक्षर की कुशिक्षा पाने वाले हे नादान ! मेरे कण्ठ का आलिङ्गन कर। फिर यदि दोनों को साथ-साथ नरक में भी निवास करना पड़े तो कोई बात नहीं (नरक भी स्वर्ग की भाँति हो जायेगा) (किसी नायिका की यह उक्ति है।)
(अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार का उदाहरण ) का विसमा दिन्वगई कि लद्धं जं जणो गुणग्गाही। किं सुक्खं सुकलत्तं किं दुग्गेज्झं खलो लोओ। (काव्या, पृ० ३९५, ६५०, साहित्य, पृ० ८१५, काव्य प्र० १०, ५२९) विषम वस्तु कौन सी है ? भाग्य की गति । दुर्लभ वस्तु कौनसी है ? गुणग्राहक व्यक्ति । सुख क्या है ? अच्छी स्त्री । दुःख क्या है ? दुष्टजनों की संगति ।
(उत्तर, नियम और परिसंख्या अलंकार का उदाहरण ) किवणाणं धणं णाआणं फणमणी केसराई सीहाणं । कुलवालिआणं थणआ कुत्तो छिप्पन्ति अमुआणम् ॥
(काव्य० प्र० १०, ४५७) कृपणों का धन, सर्पो के फण में लगे हुए रत्न, सिंहों की जटा और कुलबालिकाओं के स्तनों को जीते जी कोई हाथ तो लगा ले ?
(दीपक अलंकार का उदाहरण) किं किं दे पडिहासइ सहीहिं इअ पुच्छिआइ मुद्धाइ। पढमुल्लअदोहलिणीअ णवरि दइअं गआ दिछी ॥
(स० के० ५, २३६; गा० स० १,१५) (गर्भधारण के पश्चात् ) प्रथम दोहद वाली कोई मुग्धा नायिका अपनी सखियों से पूछे जाने पर कि तुझे क्या चीज़ अच्छी लगती है. केवल अपने प्रियतम की ओर देखने लगी।
किं गुरुजहणं अह थणभरोत्ति भाअकरअलग्गतुलिआए। विहिणो खुत्तङ्गुलिमग्गविन्भमं वहइ से तिवली ॥
(स० के० ५, ४८७) नायिका का जघन बड़ा है अथवा स्तनभार ? इसका निश्चय करतल के अग्रभाग से किया गया। उसकी त्रिवली मानो ब्रह्मा द्वारा उङ्गलियों को दबाकर बनाये हुए मार्ग का अनुकरण कर रही है । ( रसालंकार संकर का उदाहरण )
किं जम्पिएण दहमुह ! जम्पिअसरिसं अणिन्वहन्तस्स भरं । एत्तिअ जम्पिअसारं णिहणं अग्णे वि वजधारासु गआ ॥
__ (स० के० ४, १५१) . हे रावण ! ज्यादा बोलने से क्या प्रयोजन ? बोलने के समान दृढ़ संकल्प का