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६७८ प्राकृत साहित्य का इतिहास
-जो अपने शरीर का शब्द नहीं सुनता, और दीपक की गंध जिसे नहीं आती, वह सात दिन तक जीता है, सा मरणकंडी में कहा है।
प्रश्नरिष्ट के आठ भेद बताये हैं-अंगुलिप्रश्न, अलक्तप्रश्न, गोरोचनाप्रश्न, प्रभाक्षरप्रश्न, शकुनप्रश्न, अक्षरप्रश्न, हाराप्रश्न और ज्ञानप्रश्न | इनका यहाँ विस्तार से वर्णन किया है।
अग्धकंड ( अर्घकाण्ड ) दुर्गदेव की यह दूसरी कृति है। अग्घकंड का उल्लेख विशेषनिशीथचूर्णी ( १२, पृष्ठ ४५५) में भी मिलता है। यह कोई प्राचीन कृति रही होगी जिसे देखकर दुर्गदेव ने प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की | इससे इस बात का पता लगाया जाता था कि कौन-सी वस्तु खरीदने और कौन-सी वस्तु बेचने से लाभ होगा।'
रत्नपरीक्षा यह ग्रन्थ' श्रीचन्द्र के पुत्र श्रीमालवंशीय ठक्कुरफेरु ने संवत् १३७२ ( ईसवी सन १३१५) में लिखा है। ठक्कुरफेरु जिनेन्द्र के भक्त थे और दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के खजांची थे। सुरमिति, अगस्त्य और बुद्धभट्ट के द्वारा लिखित रत्नपरीक्षा को देखकर उन्होंने अपने पुत्र हेमपाल के लिये इस ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर १३२ गाथायें हैं जिनमें रनों के उत्पत्तिस्थान, जाति और मूल्य आदि का विस्तार से वर्णन है । वन नामक रत्न शूर्पारक, कलिंग, कोशल और महाराष्ट्र में, मुक्ताफल और पद्मराग मणि सिंघल और तुंबरदेश आदि स्थानों में, मरकत मणि मलयपर्वत और बर्बर देश में, इन्द्रनील सिंघल में, विद्रम विन्ध्य पर्वत, चीन, महाचीन, और नेपाल में, तथा लहसुनिया, बैडूर्य और स्फटिक नैपाल, काश्मीर और चीन आदि
१. इमं दवं विक्कीणाहि इमं वा कीणाहि ।
२. रत्नपरीक्षा, द्रव्यपरीक्षा, धातूत्पत्ति और ज्योतिपसार सिंघी जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो रहे हैं। मुनि जिनविजयजी की कृपा से मुद्रितरूप में ये मुझे देखने को मिले हैं।