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प्राकृत साहित्य का इतिहास ___-कमलिनीदल के शयनीय पर समस्त अंग निश्चल रूप से स्थापित कर दिया गया (जिससे नायिका मृतक की भाँति जान पड़ने लगी), उसके दीर्घ निश्वास की बहुलता से ही पता लगता है कि वह अभी जीवित है।
रसगंगाधर पंडितराज जगन्नाथ को शाहजहाँ (ईसवी सन् १६२८१६५७) ने अपने पुत्र दाराशिकोह को संस्कृत पढ़ाने के लिये दिल्ली आमंत्रित किया था। इनकी विद्वत्ता से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने इन्हें पंडितराज की पदवी से विभूपित किया। शाहजहाँ के दरबार में रहते हुए पंडितराज ने दाराशिकोह की प्रशस्ति में 'जगदाभरण' और नवाब आमफ की प्रशस्ति में 'आसफविलास' की रचना की। रसगंगाधर' के अतिरिक्त इन्होंने गंगालहरी, भामिनीविलास आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की है। रसगंगाधर में उद्धत एक गाथा देखियेढुंढुंणन्तो हि मरीहिसि कंटककलिआई केअइवणाई । मालइ कुसुमसरिच्छं भमर ! भयन्तो न पाविहिसि ॥
(पृ० १६५) -हे भ्रमर ! तू ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मर जायेगा, केतकी के वन काँटों से भरे हैं। मालती के पुष्पों के समान इन्हें तू कभी भी प्राप्त न कर सकेगा।
१. पंडित दुर्गाप्रसाद द्वारा संपादित, निर्णयसागर प्रेस, बंबई से सन् १८८८ में प्रकाशित ।