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६५२ प्राकृत साहित्य का इतिहास दोनों जैन थे और दोनों ने हेमचन्द्र के छन्दोनुशासन के उद्धरण दिये हैं। जिनप्रभ के समय छन्द का यह ग्रन्थ सुप्रसिद्ध था, इसीलिये अजितशान्तिस्तव के छन्दों को समझाने के लिये जिनप्रभ ने हेमचन्द्र के छन्दोनुशासन के स्थान पर कविदर्पण का ही उपयोग किया है। प्रोफेसर वेलेनकर ने कविदर्पण का रचनाकाल ईसवी सन् की १३ वीं शताब्दी माना है। छन्दोनुशासन के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में सिंहहर्ष की रनावलि नाटिका तथा जिनमृरि, सुरप्रभसूरि और तिलकसूरि की रचनाओं के उद्धरण दिये हैं। भीमदेव, कुमारपाल, जयसिंहदेव और शाकंभरिराज नामक राजाओं का यहाँ उल्लेख है । स्वयंभू,मनोरथ और पादलिप्त की कृतियों में से भी यहाँ उद्धरण दिये गये हैं। टीकाकार ने छंदःकंदली का उल्लेख किया है। वे मूल ग्रन्थकर्ता के समकालीन जान पड़ते हैं। कविदर्पण में छह उद्देश हैं। पहले उद्देश में मात्रा, वर्ण और उभय के भेद से तीन प्रकार के छन्द बताये हैं। दूसरे उद्देश में मात्राछन्द के ११ प्रकारों का वर्णन है। तीसरे उद्देश में सम, अर्धसम और विषम नामके वर्णछन्दों का स्वरूप है । चौथे उद्देश में समचतुष्पदी, अर्धसमचतुष्पदी और विपमचतुष्पदी के वर्णछन्दों का विवेचन है। पाँचवें उद्देश में उभयछन्दों और छठे उद्देश में प्रस्तार और संख्या नाम के प्रत्ययों का प्रतिपादन है।
गाहालक्खण ( गाथालक्षण) गाथालक्षण प्राकृत छंदों पर लिखी हुई एक अत्यन्त प्राचीन रचना है जिसके कर्ता नन्दिताव्य है। इसमें ६२ गाथाओं में गाथाछंद का निर्देश है। नन्दिताव्य ने ग्रन्थ के आदि में नेमिनाथ भगवान् को नमस्कार किया है जिससे उनका जैन धर्मानुयायी होना निश्चित है । ग्रन्थकार ने अपभ्रंश भाषा के प्रति तिरस्कार व्यक्त किया है (गाथा ३१)। इससे अनुमान किया जाता है कि नन्दिताव्य ईसवी सन् १००० के आसपास