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कालिदास के नाटक
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उनकी दृष्टि पड़ गई । उसे देखने के बाद अब वे नगर लौटने की बात ही नहीं करते । यही सोचते-सोचते आँखों के सामने प्रभात हो जाता है । अब क्या रास्ता है ?
शकुन्तला महाराष्ट्री में गाती है
तुम ण जाणो हिअअं मम उण कामो दिवापि रत्तिम्मि | णिग्विण तवइ बलीअं तुइ वुत्तमणोरहाइ अंगाई ॥ ( तृतीय अङ्क )
- मैं तेरे हृदय को नहीं जानती । लेकिन यह निर्दय प्रेम, जिनके मनोरथ तुममें केन्द्रित हैं ऐसे मेरे अङ्गों को, दिन और रात कष्ट देता है ।
age का मागधी में भाषण सुनिये -
एकविंश दिअशे खंडशो लोहिअमच्छे मए कप्पिदे । जाव तश्श उदलभन्तले पेक्खामि दाव एशे लदणभासुरअंगुलीअअं देखिr | पच्छा अहके शे विक्कआअ दंशअन्ते गहिदे भावमि - श्शेहिं । मालेह वा मुंचेह वा अअं शे आअमवुत्तन्ते । (पाँचवाँ अङ्क)
- एक दिन मैंने रोहित मछली को काटा। ज्यों ही मैंने उसके उदर के अन्दर देखा तो मुझे रत्न से चमचमाती एक अंगूठी दिखाई दी । फिर जब मैंने उसे बिक्री के लिये निकाल कर दिखाया तो मैं इन लोगों के द्वारा पकड़ लिया गया । अब आप चाहे मुझे मारें या छोड़ें। इसके मिलने की यही कहानी है ।
मालविकाग्निमित्र और विक्रमोर्वशीय नाटकों में भी प्राकृत का प्रयोग हुआ है । मालविकाग्निमित्र में चेटी, बकुलावलिका, कौमुदिका, राजा की पटरानी, मालविका, परिचारिका और विदूषक आदि प्राकृत बोलते हैं । यहाँ प्राकृत के संवाद बड़े सुन्दर बन पड़े हैं । विक्रमोर्वशी में रम्भा, मेनका, चित्रलेखा, उर्वशी आदि अप्सरायें, राजमहिषी, किराती, तापसी आदि स्त्री- पात्र तथा विदूषक प्राकृत बोलते हैं । अपभ्रंश में भी कुछ सुन्दर गीत दिये गये हैं