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________________ कुमारवालचरिय १०८८) सिद्धहेमव्याकरण के नियमों को समझाने के लिये कुमारपालचरित की रचना की है। हेमचन्द्र का यह महाकाव्य दो विभागों में विभक्त है । प्रथम भाग में सिद्धहेम के सात अध्यायों में उल्लिखित संस्कृत व्याकरण के नियम समझाते हुए सोलंकी वंश के मूलराज से लगाकर जैनधर्म के उपासक कुमारपाल तक के इतिहास का २० सर्गों में वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् द्वितीय भाग में आठवें अध्याय में उल्लिखित प्राकृतव्याकरण के नियमों को स्पष्ट करते हुए राजा कुमारपाल के युद्ध आदि का आठ सों में वर्णन है। इस प्रकार इस काव्य से दोहरे उद्देश्य की सिद्धि होती है, एक ओर कुमारपाल के चरित का वर्णन हो जाता है, दूसरी ओर संस्कृत और प्राकृतव्याकरण के नियम समझ में आ जाते हैं। अन्तिम दो सर्गों की रचना शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची और अपभ्रंश भाषा में है। संस्कृत द्वथाश्रयकाव्य के टीकाकार अभयतिलकगणि और प्राकृत द्वथाश्रयकाव्य के टीकाकार पूर्णकलशगणि हैं। प्राकृत द्वथाश्रयकाव्य (कुमारपाल चरित) का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जाता है। प्रथम सर्ग में अणहिल्लनगर का वर्णन है । यहाँ राजा कुमारपाल राज्य करता था, उसने अपनी भुजाओं के बल से वसुन्धरा को जीता था, वह न्यायपूर्वक राज्य चलाता था। प्रातःकाल के समय महाराष्ट्र आदि देश से आये हुए स्तुतिपाठक अपनी सूक्तियों द्वारा उसे जगाते थे । शयन से उठकर राजा प्रातःकृत्य करता, द्विज लोग उसे आशीर्वाद देते; वह तिलक लगाता, धृष्ट और अधृष्ट लोगों की विज्ञप्ति सुनता, मातृगृह में प्रवेश करता, लक्ष्मी की पूजा करता, तत्पश्चात् व्यायामशाला में जाता। दूसरे सर्ग में व्यायाम के प्रकार बताये गये हैं। वह हाथी पर सवार होकर जिनमन्दिर में दर्शन के लिये जाता, वहाँ जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति करने के पश्चात् जिनप्रतिमा का स्तवन करता, फिर सङ्गीत का कार्यक्रम होता। उसके बाद अपने अश्व पर आरूढ़ होकर वह धवलगृह को लौट जाता। तीसरे सर्ग में राजा उद्यान
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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