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प्राकृत साहित्य का इतिहास सिंहलदेश की राजकुमारी लीलावती की प्रेमकथा का वर्णन है। गाथाओं की संख्या १८०० है; ये गाथाएँ प्रायः अनुष्टुप् छन्द में लिखी गई हैं, कुछ वाक्य गद्य में भी पाये जाते हैं। ग्रन्थ-रचना का काल ईसवी सन् की लगभग ८वीं शताब्दी माना गया है। प्रन्थ की शैली अलंकृत और साहित्यिक है, भापा प्रवाहपूर्ण है। अनेक स्थानों पर प्राकृतिक दृश्यों के सुन्दर चित्रण है । मलय देश, केरला आदि का वर्णन है । राष्ट्रकूट और सोलंकियों का नाम भी आया है। वर्णन-शैली से प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार कवि कालिदास, सुबन्धु और बाणभट्ट आदि की रचनाओं से परिचित थे। इस ग्रन्थ पर लीलावती-कथा-वृत्ति नामक संस्कृत टीका है जिसके कर्ता का नाम अज्ञात है। अनुमान किया जाता है ये टीकाकार गुजरात के रहनेवाले श्वेताम्बर जैन थे जो ईसवी सन् ११७२ और १४०४ के बीच विद्यमान थे।
कुवलयावली राजा विपुलाशय और अप्सरा रंभा से उत्पन्न कन्या थी। वह गन्धर्वकुमार चित्रांगद के प्रेमपाश में पड़ गई और दोनों ने गंधर्वविधि से विवाह कर लिया। कुवलयावली के पिता को जब इस बात का पता लगा तो उसने क्रुद्ध होकर चित्रांगद को शाप दिया जिससे वह भीषणानन नाम का राक्षस बन गया। कुवलयावली ने निराश होकर आत्महत्या करना चाहा, लेकिन रंभा ने उपस्थित होकर उसे धीरज बंधाया और उसे यक्षराज नलकूबर के सुपुर्द कर दिया।
विद्याधर हंस के वसंतश्री और शरदश्री नाम की दो कन्यायें थीं। वसंतश्री का विवाह नलकुबेर के साथ हुआ था । महानुमती इनकी पुत्री थी । महानुमती और कुवलयावली दोनों में बड़ी प्रीति थी। एक बार वे दोनों विमान में बैठकर मलय पर्वत पर गई| वहाँ सिद्धकुमारियों के साथ झूला झूलते हुए महानुमति और सिद्धकुमार माधवानिल का परस्पर प्रेम हो गया। घर लौटने पर महानुमति अपने प्रिय के विरह से व्याकुल रहने लग ' बाद में पता चला कि माधवानिल को कोई शत्रु