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गउडवहो
न्याय, छंद और पुराणों का वह पंडित था। पंडितों के अनुरोध पर उसने यह काव्य लिखना आरंभ किया था।
यशोवर्मा के गुणों का वर्णन करते हुए कवि ने संसार की असारता, दुर्जन, सज्जन, और स्वाधीन सुख आदि का वर्णन किया है । देखिये
पेच्छह विवरीयमिमं बहुया मइरा मएइ ण हु थोवा । लच्छी उण थोवा जह मएइ ण तहा इर बहुया ॥
-देखो, कितनी विपरीत बात है, बहुत मदिरा का पान करने से नशा चढ़ता है, थोड़ी का करने से नहीं । लेकिन थोड़ीसी लक्ष्मी जितना मनुष्य को मदमत्त बना देती है, उतना अधिक लक्ष्मी नहीं बनाती।
एक दूसरी व्यंग्योक्ति देखियेपत्थिवघरेसु गुणिणोवि णाम जइ केवि सावयास व्व । जणसामण्णं तं ताण किंपि अण्णं चिय निमित्तं ।।
-यदि कोई गुणी व्यक्ति राजगृहों में पहुँच जाता है तो इसका कारण यही हो सकता है कि जनसाधारण की वहाँ तक पहुँच है, अथवा इसमें अन्य कोई कारण हो सकता है, उसके गुण तो इसमें कदापि कारण नहीं हैं। एक नीति का पद्य सुनिये
तुंगावलोयणे होइ विम्हओ णीयदसणे संका।
जह पेच्छंताण गिरिं जहेय अवइं णियंताण ॥ -ऊँचे आदमी को देखकर विस्मय होता है और नीच को देखकर शंका | उदाहरण के लिये, किसी पहाड़ को देखकर विस्मय और कुएँ को देखकर शङ्का होती है। यश के स्थायित्व के सम्बन्ध में कवि ने लिखा हैकालवसा णासमुवागयस्स सप्पुरिसजससरीरस्स । अट्ठिलवायंति कर्हिपि विरलविरला गुणग्गारा॥
-काल के वश से नाश को प्राप्त सत्पुरुष का यश मृत पुरुष की हड्डियों की भाँति कभी-कभी स्मरण किया जाता है ।
३८प्रा० सा०