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५७२ प्राकृत साहित्य का इतिहास दधि ) में नमस्कारमंत्र का स्तवन किया गया है । देवेन्द्रसूरि का चत्तारिअट्ठदसथव, सम्यक्त्वस्वरूपस्तव, गणधरस्तवन, चतुर्विंशतिजिनस्तवन, जिनराजस्तव, तीर्थमालास्तव, नेमिचरित्रस्तव, परमेष्ठिस्तव, पुंडरीकस्तव, वीरचरित्रस्तव, वीरस्तवन, शाश्वतजिनस्तव, सप्तशतिजिनस्तोत्र और सिद्धचक्रस्तवन आदि स्तोत्र-प्रन्थों की प्राकृत में रचना की गई है।
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१. ये सब लघु ग्रंथ सिंघी जैनग्रन्थमाला, बंबई से प्रकाशित हो रहे हैं। मुनि जिनविजय जी की कृपा से मुझे देखने को मिले हैं।
२. देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९३३ में प्रकाशित ।
३. देखिये जैन ग्रन्थावलि, पृ० २७२-२९५। नन्दीसरथव, जिणयोत्त, सिरिवीरथुई और कल्लाणयथोत्त सिरिपयरणसंदोह में संग्रहीन हैं (ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम, १९२९)। डॉक्टर डब्ल्यू शूलिंग ने स्तोत्र-साहित्य के संबंध में ज्ञानमुक्तवलि, दिल्ली, १९५९ में एक महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित किया है।