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सुदंसणाचरिय
५६३ ज्ञात्वा कथितं च तया गगने विर्याति तात ! विख्यातः। अहरेति वृद्धिमनिशं, प्रियरहितं दहति विरहश्च ।।
-१ गगन में पक्षी उड़ता है, २ दिन निरन्तर वृद्धि और क्षय को प्राप्त होता है, और ३ प्रियरहित विरह स्त्री-पुरुषों को दग्ध करता है।
इसके बाद सुदर्शना ने राजा से प्रश्न कियाबोध्यो देववरः कथं बहुषु वै ? कः प्रत्ययः कर्मणां ? संबोध्यस्तु कथं सदा सुररिपुः किं श्लाध्यते भूभृताम् ? किं त्वन्यायवतामहो क्षितिभृतां लोकैः सदा निन्द्यते ? व्यस्तन्यस्तसमस्तकंचनततः शीघ्रं विदित्वोच्यताम् ।
-१ बहुत से देवों में श्रेष्ठतर देव को कैसे समझा जाये ? २ कमों का कौन सा प्रत्यय है ? ३ देवताओं के शत्रु को किस प्रकार सम्बोधित किया जाये ? ४ राजाओं की किस बात से प्रशंसा होती है ? ५ किन्तु आश्चर्य है कि अन्याययुक्त राजाओं की लोक में सदा निन्दा होती है-सोच समझ कर शीघ्र ही इसका उत्तर दो। ___ राजा ने जब उत्तर देने में असमर्थता प्रकट की तो सुदर्शना ने उत्तर दिया-अयशः (१ अय् = देव, २ शस् , ३ हे अ = कृष्ण, ४ यश, ५ अयश)।
धर्माधर्मविचार नाम के चौथे उद्देश में राजसभा में ज्ञाननिधि नाम का एक पुरोहित आता है। वह ब्राह्मण धर्म का उपदेश देता है, लेकिन सुदर्शना उसके उपदेश का खण्डन करके मुनि धर्म का प्रतिपादन करती है । पाँचवें उद्देश में शीलमती का विजयकुमार के साथ विवाह होता है। शीलमती का हरण कर लिया जाता है, इस पर विजयकुमार और विद्याधर में युद्ध होता है । छठे उद्देश में धर्मयश नाम के चारण श्रमण के धर्मोपदेश का वर्णन है । सातवें उद्देश में सुदर्शना अपने माता-पिता आदि के साथ सिंहलद्वीप से भरुयकच्छ के लिये प्रस्थान