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५५० प्राकृत साहित्य का इतिहास मंत्र की सामर्थ्य से आवेशयुक्त होकर वह प्रश्नों का उत्तर देने लगी । औषधि अथवा मंत्र आदि वशीकरण अथवा उच्चाटन करने में समर्थ माने जाते थे। इसे कम्मणदोस कहा गया है। किसी गुटिका आदि से यह दोष शान्त हो सकता था। ___ पाँचवें प्रस्ताव में पार्श्वनाथ का मथुरा नगरी में समवशरण आता है, और वे दान आदि का धर्मोपदेश देते हैं। उन्होंने गणधरों को उपदेश दिया। तत्पश्चात् काशी में प्रवेश किया। सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नों के उत्तर दिये | शिव, सुन्दर, सोम
और जय नाम के उनके चार शिष्यों का वृत्तान्त है। वहाँ से पार्श्वनाथ ने आमलकल्पा नगरी में विहार किया। चातुर्याम धर्म का उन्होंने प्रतिपादन किया। अन्त में सम्मेय शैल शिखर पर पहुँचकर मुक्ति पाई।
__महावीरचरिय ( महावीरचरित) महावीरचरित गुणचन्द्रगणि की तीसरी रचना है।' वि० सं० ११३६ (ईसवी सन् १०८२) में उन्होंने १२,०२५ श्लोकप्रमाण इस प्रौढ़ ग्रन्थ की रचना की थी। गुणचन्द्र की रचनाओं के अध्ययन से इनके मन्त्र-तन्त्र, विद्या-साधन तथा वाममार्गियों
और कापालिकों के क्रियाकाण्ड आदि के विशाल ज्ञान का पता लगता है। महावीरचरित में आठ प्रस्ताव हैं जिनमें से आधे भाग में महावीर के पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। यहाँ राजा, नगर, वन, अटवी, उत्सव, विवाहविधि, विद्यासिद्धि आदि के रोचक वर्णन मिलते हैं। काव्य की दृष्टि से यह ग्रन्थ एक सफल रचना है। कालिदास, बाणभट्ट, माघ आदि संस्कृत के का बहुत महत्व है। मंदिरों में दीपक जलाने और मूर्ति को स्पर्श आदि करने का कार्य कुमारी ही करती है।
१. यह ग्रन्थ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तक उद्धार ग्रन्थमाला में सन् १९२९ में बम्बई से प्रकाशित हुआ है। इसका गुजराती अनुवाद वि० संवत् १९९४ में जैन आस्मानन्द.सभा ने प्रकाशित किया है।