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५३२ प्राकृत साहित्य का इतिहास पच्चीसवें उद्देशक में अपराजिता से पद्म (राम), सुमित्रा से लक्ष्मण तथा कैकयी से भरत और शत्रुघ्न की उत्पत्ति बताई है। छब्बीसवें उद्देशक में सीता और भामंडल की उत्पत्ति का वृत्तान्त है। यहाँ मांसविरति का फल बताया गया है । राम द्वारा म्लेच्छों की पराजय का उल्लेख है। राम-लक्ष्मण को धनुषरत्न की प्राप्ति हुई। मिथिला में सीता का स्वयंवर रचा गया। राम ने धनुष को उठाकर उस पर डोरी चढ़ा दी और सीता ने उनके गले में वरमाला पहना दी । उनतीसवें उद्देशक में दशरथ के वैराग्य का वर्णन है। इस प्रसंग पर आषाढ़ शुक्ला अष्टमी के दिन दशरथ ने जिन चैत्यों की पूजा का माहात्म्य मनाया। जिनपूजा करने के पश्चात् उसने गंधोदक को अपनी रानियों के लिये भेजा। रानी ने गंधोदक को अपने मस्तक पर चढ़ाया। पटरानी को यह पवित्र जल नहीं मिला जिससे उसने दुखी होकर अपने जीवन का अन्त करना चाहा । इतने में कंचुकी जल लेकर पहुंचा और उसका मन शान्त हो गया। तत्पश्चात् दशरथ ने प्रव्रज्या ग्रहण करने का निश्चय किया। अपने पिता का यह निश्चय देख भरत ने भी प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा लेने का विचार किया । कैकेयी यह जानकर अत्यंत दुखी हुई। इस समय उसने दशरथ से अपना वर माँगा कि भरत को समस्त राज्य सौंप दिया जाये। दशरथ ने इसे स्वीकार कर लिया। राम ने भी इसका अनुमोदन किया और वे स्वेच्छा से वनगमन के लिये तैयार हो गये। लक्ष्मण और सीता भी साथ में चलने को तैयार हो गये । वन में जाकर तीनों इधर-उधर परिभ्रमण करते रहे। दण्डकारण्य में वास करते समय लक्ष्मण ने खरदूपण के पुत्र शंबूक का वध कर डाला | चन्द्रनखा रावण की बहन और खरदूपण की पत्नी थी। उसने अपने पुत्र के मारे जाने के कारण बहुत विलाप किया । यह समाचार जब रावण के पास पहुँचा तो वह अपने पुष्पक विमान में बैठकर आया और सीता को हर कर ले गया। सीताहरण का समाचार पाकर राम ने बहुत विलाप किया। तत्पश्चात् लक्ष्मण के साथ वानरसेना को लेकर उन्होंने लंका