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पउमचरिय
५२९ अधिकारों में विभक्त किया गया है-विश्व की स्थिति, वंशोत्पत्ति, युद्ध के लिये प्रस्थान, युद्ध, लव और कुश की उत्पत्ति, निवोण और अनेक भव । तत्पश्चात् विस्तृत विषयसूची दी हुई है। श्रेणिकचिन्ताविधान नामक दूसरे उद्देशक में राजगृह, राजा श्रेणिक, महावीर, उनका उपदेश और पद्मचरित के संबंध में राजा श्रेणिक की शंका आदि का वर्णन है। विद्याधरलोकवर्णन · में राजा श्रेणिक गौतम के पास उपस्थित होकर रामचरित के संबंध में प्रश्न करते हैं। गौतम केवली भगवान् के कथन के अनुसार प्रतिपादन करते हैं कि मूढ़ कवियों का रावण को राक्षस और मांसभक्षी कहना मिथ्या है । इस प्रसंग पर ऋषभदेव के चरित का वर्णन करते हुए बताया है कि उस समय कृतयुग में क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र केवल यही तीन वर्ण विद्यमान थे। यहाँ विद्याधरों की उत्पत्ति बताई है। चौथे उद्देशक में लोकस्थिति, भगवान ऋषभ का उपदेश, बाहुबलि, की दीक्षा, भरत की ऋद्धि और ब्राह्मणों की उत्पत्ति का प्रतिपादन है। पाँचवें उद्देशक में इक्ष्वाकु, सोम, विद्याधर और हरिवंश नाम के चार महावंशों की उत्पत्ति तथा अजितनाथ आदि के चरित का कथन है। छठे उद्देशक में राक्षस एवं वानरों की प्रव्रज्या का वर्णन है। वानरवंश की उत्पत्ति के संबंध में कहा है कि वानर लोग विद्याधर वंश के थे तथा इनकी ध्वजा आदि पर वानर का चिह्न होने के कारण ये विद्याधर वानर कहे जाते थे । सातवें उद्देशक में दशमुख (रावण) की विद्यासाधना के प्रसंग में इन्द्र, लोकपाल और रत्नश्रवा आदि का वृत्तान्त है। रावण का जन्म, उसकी विद्यासाधना आदि का उल्लेख है। रावण की माता ने अपने पुत्र के गले में उत्तम हार पहनाया; इस हार में रावण के नौ मुख प्रतिबिम्बित होते थे, इसलिये उसका नाम देशमुख रक्खा गया। भीमारण्य में जाकर दशमुख ने विद्याओं की साधना की। यहाँ अनेक विद्याओं के नाम उल्लिखित हैं। आठवें उद्देशक में रावण का मन्दोदरी के साथ विवाह, कुंभकर्ण और विभीषण का विवाह, इन्द्रजीत का जन्म, रावण और
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