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५१० प्राकृत साहित्य का इतिहास देवदत्त और सरस्वती का विवाह हो गया। भूई नाम की कलहकारिणी सास का चित्रण देखिये
कम्मक्खणि य न गेहु मुयंती । बहुयाए सह जुझि लगती। मुणिवर पेक्खिवि मुहु मोडंती, देती ताडण फोडिहिज्जंती॥ गेहममत्तिण पाव कुणंती, धम्मु मणिवि न कयाइ धरती। एवह निक्खपणियम्मि हुइ, अच्छइ बारि बइट्ठी भूइ ॥
-कर्मों की खान वह घर नहीं छोड़ सकती है, बहू के साथ वह लड़ाई-झगड़ा करती है, मुनियों को देखकर मुँह बिचकाती है, उनका मारण-ताडन करती है। घर की ममता से वह पाप करती है, मन में धर्म कभी धारण नहीं करती-ऐसी अभागी भूई घर के द्वार पर बैठी हुई है।
कौशांबी के किसी ब्राह्मण की दरिद्रता का चित्रण किया गया हैनत्थि घरे मह दव्वं विलसइ लोओ पयछणओ त्ति । डिभाइं रुयंति तहा हद्धी किं देमि घरिणीए ? दिति न मह ढोयंपि हु अत्तसमिद्धीइ गव्विया सयणा । सेसाविहु धणिणों परिहवंति न हु देति अवयासं ॥ अज घरे नस्थि घयं तेल्लं लोणं च इंधणं वत्थं । जाया व अन्ज तउणी' कल्ले किह होहिइ कुडुंब ॥ वड्ढइ घरे कुमारी बाली तणओ न विढप्पइ अत्थे । रोगबहुलं कुटुंबं ओसहमोल्लाइयं नत्थि ॥ उक्कोपा मह धरिणी समागया पाहुणा बहू अन्न | जिन्नं घरं च हट्टं झरइ जलं गलइ सव्वं पि॥ कलहकरी मह भजा असंवुडो परियणो बहू विरूवो । देसो अधारणिज्जो एसो वच्चामि अन्नत्थ ॥ जलहि पविसेमि महिं तरेमि धाउं धमेमि अहवा वि । विजं मंतं साहेमि देवयं वावि अच्चमि ।। जीवइ अज्जवि सत्तू मओ य इट्ठो पहू य मह हट्ठो । दाणिग्गहणं मग्गंति विहविणो कत्थ वच्चामि ? 1. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तौणी शब्द आजकल भी प्रचलित है।