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सीलोवएसमाला
५०५ सीलोवएसमाला इसके कर्ता जयसिंहसूरि के शिष्य जयकीर्ति हैं। इनमें उन्होंने ११६ गाथाओं में शील अर्थात् ब्रह्मचर्य-पालन का उपदेश दिया है। इस ग्रन्थ के ऊपर संघतिलक के शिष्य सोमतिलक सूरि ने शीलतरंगिणी नाम की वृत्ति वि० सं० १३६४ (ईसवी सन् १३३७ ) में लिखी है। विद्यातिलक और पुण्यकीर्ति ने भी वृत्तियों की रचना की है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है ।
भुवनसुन्दरी नागेन्द्रकुल के आचार्य समुद्रसूरि के दीक्षित शिष्य विजयसिंह सूरि ने सन् ६१७ में ११००० श्लोकप्रमाण प्राकृत में भुवनसुंदरी नाम की कथा की रचना की। इसकी हस्तलिखित प्रति मुनि पुण्यविजय जी के पास है, इसे वे शीघ्र ही प्रकाशित कर रहे हैं।
भवभावना भवभावना के कर्ता मलधारि हेमचन्द्रसूरि हैं। प्रश्नवाहन कुल के हर्षपुरीय नामक विशाल गच्छ में जयसिंहसूरि हुए, उनके शिष्य का नाम अभयदेवसूरि था । अभयदेव अल्प परिग्रही थे और अपने वस्त्रों की मलिनता के कारण मलधारी नाम से प्रसिद्ध थे। पंडित श्वेतांबराचार्य भट्टारक के रूप में प्रसिद्ध मलधारी हेमचन्द्रसूरि इन्हीं अभयदेव के शिष्य थे। इन्होंने विक्रम संवत् ११७० (सन् ११२३) में मेड़ता और छत्रपल्ली में रहकर भवभावना (जिसे उपदेशमाला भी कहा है) और उसकी स्वोवज्ञ वृत्ति की रचना की है। ये आचार्य अनुयोगद्वारसूत्र-वृत्ति, आवश्यकटिप्पण, उपदेशमाला (पुष्पमाला ), शतकविवरण, जीवसमासविवरण आदि ग्रन्थों के भी रचयिता हैं। भवभावना की बारह भावनायें बारह दिन में पढ़ी जाती हैं । इसमें ५३१ गाथायें हैं जिनमें १२ भावनाओं का वर्णन है।
१. ऋषभदेव केशरीमलजी जैन श्वेतांबर संस्था, रतलाम द्वारा वि० सं० १९९२ में दो भागों में प्रकाशित ।