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जिनदत्ताख्यान
रूडातणी रहाडि सदैव मांडई नीचातणि संगि स्वधर्मछांडइं ॥३॥'
-नारी के विचारों के संबंध में मैं कितना कहूँ, वे कितना अपार कूट-कपट करती हैं, सौगन्ध खा-खाकर झूठ बोलती हैं, बेर की गुठली जितना भी उनको बात का ज्ञान नहीं। जो बात न कथा में है, न पोथी-पुराण में है, देवताओं में भी जो बात प्रसिद्ध नहीं, और जो बात किसी को नहीं सूझती, वह निष्ठुर बोल पिशाची नारी बोलती है। वह करोड़ों कूट-कपट स्वयं करती और दसरों से कराती है, इसमें वह अपना सच्चापन जता देती है। रूढियों से वह सदैव चिपटी रहती है, लकीर की फकीर होती है, और नीच के संग से अपने धर्म को छोड़ देती है।
लेकिन रत्नवती ने कहा कि ये सब बातें कुलीन स्त्रियों के संबंध में नहीं कही जा सकतीं, जो ऐसा कहता है उसका मनुष्य जन्म ही निरर्थक है। __ अस्तु, अन्त में रनशेखर और रत्नवती का बड़ी धूमधाम से विवाह होता है। दोनों रत्नपर लौट आते हैं और बड़े सजधज के साथ नगरी में प्रवेश करते हैं। दोनों जैनधर्म का पालन करते हैं तथा व्रत, उपवास, और प्रौषध आदि में अपना समय यापन करते हैं।
'एक बार कलिंगदेश के राजा ने जनपद पर चढ़ाई कर दी। सामन्तों ने क्षुब्ध होकर जब राजा रत्नशेखर को यह संवाद सुनाया तो उत्तर में उन्होंने कहा कि आज मेरा प्रौषध है, और इस प्रकार की पापानुबंधी कथा तुम लोगों को नहीं करनी चाहिये । किसी माननीय व्यक्ति ने राजा से निवेदन किया-महाराज ! ऐसे समय क्षत्रिय कुल को कलंकित करनेवाले तथा कायर जनों द्वारा सेवित इस धर्म का आपको पालन नहीं करना चाहिये ।
१. यहाँ तणा, तणउं, तणी, कीधी, मांडई आदि रूप गुजराती के हैं।
२. मिलाइये-मलिक मुहम्मद जायसी की 'पद्मावत' और जटमल के 'गोरा बादल की बात' की कथा के साथ ।