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४७६ प्राकृत साहित्य का इतिहास रख लिया और उसे बहुबुद्धि को लौटाने से इन्कार कर दिया । अन्त में अपने बुद्धिकौशल से बहुबुद्धि ने उस हार को प्राप्त कर लिया । अनित्यता को समझाने के लिये समुद्रदत्त की कथा वर्णित है । यहाँ धनार्जन की मुख्यता बताई गई है
कि पढिएणं ? बुद्धीए किं ? व किं तस्स गुणसमूहेण ?
जो पियरविढन्तधणं भुंजइ अजणसमत्थो वि ॥ -पढ़ने से क्या लाभ ? बुद्धि से क्या प्रयोजन ? गुणों से क्या तात्पर्य ? यदि कोई धनोपार्जन में समर्थ होते हुए भी अपने पिता के द्वारा अर्जित धन का उपभोग करता है।
समुद्रयात्रा के वर्णन में मार्ग में कालिका वायु चलती है जिससे जहाज टूट जाता है। बहुत से यात्रियों को अपने प्राणों से वंचित होना पड़ता है। श्रेष्ठीपुत्र के हाथ में लड़की का एक तख्ता पड़ जाता है, और उसके सहारे वह किसी पर्वत के किनारे जा लगता है। वहाँ से सुवर्णभूमि पहुँचकर वह सोने की ईंटें प्राप्त करता है । कर्म की प्रधानता देखिये
अह्वा न दायव्यो दोसो कस्स वि केण कइया वि । पुव्वज्जियकम्माओ हवंति जं सुक्खदुक्खाई॥
-अथवा किसी को कभी भी दोष नहीं देना चाहिये, पूर्वोपार्जित कर्म से ही सुख-दुख होते हैं।
मलयसुंदरीकहा इसमें महाबल और मलयसुंदरी की प्रणयकथा का वर्णन है। दुर्भाग्य से इस कथा के कर्ता का नाम अज्ञात है। लेकिन धर्मचन्द्र ने इसके ऊपर से संस्कृत में संक्षिप्त कथा की रचना की, इससे इस कथा का समय १४वीं शताब्दी के पूर्व ही माना जाता है।
जिनदत्ताख्यान जिनदत्ताख्यान के कर्ता सुमतिसूरि हैं जो पाडिच्छयगच्छीय