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कहारयणकोस मार्ग (बौद्धमार्ग ) का उल्लेख है। धर्मदेवकथानक में सिंहलदेश
और केरल देश का उल्लेख है। विजयदेव कथानक में रत्न के व्यापारियों का वर्णन है । सुदत्तकथानक में गृहकलह का बड़ा स्वाभाविक चित्रण किया गया है
कोई बहू कुँए से जल भर कर ला रही थी, उसका घड़ा फूट गया । यह देखकर उसकी सास ने गुस्से में उसे एक तमाचा जड़ दिया। बहू की लड़की ने जब यह देखा तो उसने अपनी दादी के गले में से नौ लड़ियों का हार तोड़कर गिरा दिया । बहू की ननद अपनी मां का यह अपमान देखकर मूसल हाथ में उठाकर अपनी भतीजी को मारने दौड़ी जिससे उसका सिर फट गया और उसमें से लहू बहने लगा। यह देखकर बहू भी अपनी ननद को मूसल से मारने लगी। इस प्रकार प्रतिदिन किसी न किसी बात पर सारे घर में कलह मचा रहता और घर का मालिक लज्जावश किसी से कुछ नहीं कह सकता था।
एक दूसरी कथा सुनिये
किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे। जब ब्राह्मण की जीविका का कोई उपाय न रहा तो उसने अपने पुत्रों को बुलाकर सब बात कही। यह सुनकर चारों पुत्र धन कमाने चल दिये। पहला पुत्र अपने चाचा के यहाँ गया। पूछने पर उसने कहा कि पिता जी ने अपना हिस्सा माँगने के लिये मुझे आपके पास भेजा है। यह सुनकर चाचा अपने भतीजे को भला-बुरा कहने लगा,
और गुस्से में आकर चाचा ने उसका सिर फोड़ दिया । मुकदमा राजकुल में पहुँचा | चाचा ने किसी तरह ५०० द्रम्म देकर अपना पिंड छुड़ाया। लड़के ने यह रुपया अपने पिता को ले जाकर दे दिया । दूसरा पुत्र त्रिपुंड आदि लगाकर किसी योगाचार्य के पास गया और रौब में आकर उसे डाटने-फटकारने लगा। योगाचार्य डर कर उसके पैरों में गिर पड़ा और उसने उसे बहुत सा सोना दान में दिया। तीसरे पुत्र ने धातुविद्या सीख ली और अपनी विद्या से वह लोगों को ठगने लगा। उसने किसी