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प्राकृत साहित्य का इतिहास -खोटी स्त्री, दारिद्रय, व्याधि और कन्याओं की बहुलताइन्हें प्रत्यक्ष नरक ही समझना चाहिये, शास्त्रों का नरक तो केवल परोक्ष नरक है। आशा के संबंध में कहा गया है
आसा रक्खइ जीयं सुट्ठ वि दुहियाण एस्थ संसारे । होइ निरासाण जओ तक्खणमित्तण मरणं पि॥
-इस संसार में एक आशा ही दुखी जीवों के जीवन का साधन है। निराश हुए जीव तत्क्षण मरण को प्राप्त होते हैं। कायर पुरुषों के संबंध में उक्ति हैकागा कापुरिसा वि य इत्थीओ तह य गामकुक्कडया। एगट्ठाणे वि ठिया मरणं पावेंति अइबहुहा ।'
-कौए, कापुरुष, स्त्रियाँ और गाँव के मुर्गे ये एक स्थान पर रहते हुए ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
Aआख्यानमणिकोश ( अक्खाणमणिकोस ) ___ आख्यानमणिकोश उत्तराध्ययनसूत्र पर सुखबोधा नाम की टीका (रचनाकाल विक्रम संवत् ११२६) के रचयिता नेमिचन्दसूरि की महत्वपूर्ण रचना है। प्राकृत कथाओं का यह कोप है। आम्रदेवसूरि (ईसवी सन् ११३४) ने इस पर टीका लिखी है। इसमें ४१ अधिकार हैं, मूल और टीका दोनों प्राकृत पद्य में हैं; टीकाकार ने कहीं गद्य का भी उपयोग किया है। कुछ आख्यान अपभ्रंश में हैं, बीच-बीच में संस्कृत के पद्य मिलते हैं। टीकाकार ने प्राकृत और संस्कृत के अनेक श्लोक प्रमाणरूप में उद्धृत किये हैं जिससे लेखक के पांडित्य
१. मिलाइये-स्थानभ्रष्टाः न शोभन्ते काकाः कापुरुषाः नराः (हितोपदेश)।
२. यह ग्रन्थ मुनि पुण्यविजयजी द्वारा संपादित होकर प्राकृत जैन सोसायटी द्वारा प्रकाशित हो रहा है । प्रोफेसर दलसुख मालवणिया की कृपा से मुझे इसके कुछ मुद्रित फमैं देखने को मिले हैं।