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४३६ प्राकृत साहित्य का इतिहास सिंहद्वार से अपने घर तक के राजमार्ग को सजाने की व्यवस्था की। पहले उसने बल्लियाँ खड़ी की, उन पर बाँस बिछाये, बाँसों पर खप्पचे डाली और उन्हें सुतलियों से कसकर बाँध दिया । उन पर खस की टट्टियाँ बिछाई गई, दोनों ओर द्रविडदेश के वस्त्रों के चन्दोवे बाँधे गये। हारावलियाँ लटका कर कंचुलियाँ बनाई गई, जालियों में वैडूर्य लटकाये गये, सोने के झूमके बाँधे गये, पुष्पगृह बनाया गया, और बीच-बीच में तोरण लटकाये गये | ज़मीन पर सुगंधित जल का छिड़काव किया गया, जगह-जगह धूपदान रक्खे गये, और सर्वत्र पहरेदार नियुक्त कर दिये गये। विलासिनियां मंगलाचार गाने लगी, गीत-वादित्रों की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी और नाटक दिखाये जाने लगे। __ भद्रा की कोठी में प्रवेश करते हुए राजा ने दोनों तरफ बनी हुई घुड़साल और हस्तिशाला देखी । भवन में प्रवेश करने पर पहली मंजिल में बहुमूल्य वस्तुओं का भंडार देखा । दूसरी मंजिल पर दास-दासी भोजन-पान की सामग्री जुटाने में लगे थे । तीसरी मंजिल पर रसोइये रसोई की तैयारी कर रहे थेकोई सुपारी काट रहा था और कोई पान का बीड़ा बना कर उसमें केसर, कस्तूरी आदि रख रहा था। चौथी मंजिल पर सोने-बैठने और भोजन करने की शालायें थीं, और पास के कोठों में अनेक प्रकार का सामान भरा पड़ा था। पांचवीं मंजिल पर एक अत्यन्त सुन्दर बगीचा था, जहाँ स्नान करने के लिये एक पुष्करिणी बनी थी। श्रेणिक और चेलना ने इस पुष्करिणी में जलक्रीडा की | फिर चैत्यपूजा के पश्चात् नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यञ्जनों से उनका सत्कार किया गया। उसके बाद चिलमची (पडिग्गह-पतग्रह ) में उनके हाथ धुलवाये गये, दांत साफ करने के लिये दांत-कुरेदनी दी गई और हाथ पोंछने के लिये सुगन्धित तौलिये उपस्थित किये गये | इस समय शालिभद्र भी वहाँ आ पहुँचा था | उसे देखते ही राजा ने उसे अपने भुजा.