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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास पड़नेवाले अपने केशों को अपने हाथ में धारण किया। अपने प्रिय के विरह से वह दुर्बल होने लगी, उसके कंपोल क्षीण हो गये और मुख पीला पड़ गया। इस प्रसङ्ग पर पञ्चतन्त्र की भाँति यहाँ भी कृतघ्न वायस, शाकटिक आदि के लौकिक आख्यान कहे गये हैं | यवनदेश के राजा का भेजा हुआ कोई दूत कौशांबी नगरी में आया । राजा के पुत्र को कुष्ठरोग से पीड़ित देखकर वह कहने लगा कि क्या आप लोगों के देश में कोई औषधि नहीं, अथवा वैद्यों का अभाव है जो यह राजकुमार स्वस्थ नहीं हो सकता | अर्थशास्त्र का एक श्लोक यहाँ उद्धृत है "विसेसेण मायाए सत्येण य हंतव्वो अपणो विवड्ढमाणो सत्तु त्ति" -बढ़ते हुए अपने शत्रु को खास तौर से माया अथवा शक्ति द्वारा मार देना चाहिये। भगवद्गीता का यहाँ उल्लेख है। आख्यायिका-पुस्तक, कथाविज्ञान और व्याख्यान की जानकार स्त्रियों के नामोल्लेख हैं। शौकरिक और केवटों के मोहल्ले (वाडय) अलग थे, और वहाँ से मत्स्य-मांस खरीदा जा सकता था। दूसरे को दुख देने को अधर्म और सुख देने को धर्म कहा है (अहम्मो परदुक्खस्स करणेण, धम्मो य परस्स सुहप्पयाणेणं); यही जैनधर्म की विशेषता बताई है। जिसने सब प्रकार के आरंभ का त्याग कर दिया है और जो धर्म में स्थित है वह श्रमण है। - पीठिका में प्रद्युम्न और शंबकुमार की कथा का सम्बन्ध, राम-कृष्ण की अप्रमहिषियों का परिचय, प्रद्युम्नकुमार का जन्म और उसका अपहरण, प्रद्युम्न के पूर्वभव, प्रद्युम्न का अपने माता-पिता से समागम, और पाणिग्रहण आदि का वर्णन है । हरिणगमेषी से स्त्रियाँ पुत्र की याचना किया करती थीं। बत्तीस नाट्यभेदों का उल्लेख है। गणिकाओं की उत्पत्ति बताई गई है। एक बार राजा भरत के सामंत राजाओं ने अपनी स्वामी
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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