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वसुदेवहिण्डी
३८३ बीच में अणुव्रत के गुण-दोष, परलोक की सिद्धि, महाव्रतों का स्वरूप, मांसभक्षण में दोष, वनस्पति में जीव की सिद्धि आदि जैनधर्मसंबंधी तत्त्वों का विवेचन है। जर्मन विद्वान् आल्सडोर्फ ने वसुदेवहिण्डी की गुणाढ्य की बृहत्कथा से तुलना की है, संघदासगणि की इस कृति को वे बृहत्कथा का रूपांतर स्वीकार करते हैं। __ कहुप्पत्ति में जंबूस्वामिचरित, जंबू और प्रभव का संवाद, कुबेरदत्तचरित, महेश्वरदत्त का आख्यान, वल्कलचीरि प्रसन्नचंद्र का आख्यान, ब्राह्मण दारक की कथा, अणाढियदेव की उत्पत्ति आदि का वर्णन है। अन्त में वसुदेवचरित की उत्पत्ति बताई गई है।
तत्पश्चात् धम्मिल्ल के चरित का वर्णन है। विवाह होने के बाद भी धम्मिल्ल रात्रि के समय पढ़ने-लिखने में बहुत व्यस्त रहता था। उसकी मां को जब इस बात का पता लगा तो उसने पढ़ना-लिखना बंद कर अपने पुत्र का ध्यान अपनी नवविवाहिता वधू की ओर आकर्षित करना चाहा । परिणाम यह हुआ कि वह वेश्यागामी हो गया__'ततो अन्नया कयाइ सस्सू से धूयदंसत्थं सुयाघरमागया । सम्माणिया य घरसामिणा विहवाणुरूवेणं संबंधसरिसेणं उवयारेण | अइगया य धूयं दळूण, पुच्छिया य णाए सरीरादिकुसलं । तीए वि पगतविणीयलज्जोणयमुहीए लोगधम्मउवभोगवज्ज सव्वं जहाभूयं कहियं । तं जहा
पासि कपि चउरंसिय रेवापयपुण्णियं, सेडियं च गेण्हेप्पि ससिप्पभवणियं । मई सुयं णि एकल्लियं सयणि निवणियं,
सव्वरत्तिं घोसेइ समाणसवण्णियं ॥ तो सा एवं सोऊण आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिकिया मिसिमिसेमाणी इत्थीसहावच्छल्लयाए पुत्तिसिणेहेण य माऊए