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प्राकृत साहित्य का इतिहास जागता चित्र उपस्थित किया है। यह सेठानी बड़ी कृपण थी, घर आये हुए किसी साधु-संत को कभी कुछ नहीं देती थी। जब कुछ साधु उसके पीछे ही पड़ गये तो जलती हुई लकड़ी लेकर वह खुले केशों से इस बुरी तरह उन्हें मारने झपटी कि फिर कभी उन्होंने सेठानी को मुँह नहीं दिखाया । मलधारी हेमचन्द्र ने भवभावना में भूई नाम की एक कलिहारी सास का चित्रण किया है। वह कभी घर से बाहर नहीं निकलती थी; अपनी बहू के साथ लड़ाई-झगड़ा करती रहती, साधु-संतों को. देखकर मुँह बिचकाती और किसी न किसी के साथ उसका झगड़ा-टंटा लगा ही रहता था। कौशांबी के एक अत्यंत दरिद्र ब्राह्मण परिवार का भी यहाँ एक करुणाजनक चित्र उपस्थित किया गया है। बच्चे उसके भूख से बिलबिला रहे हैं, स्त्री उदास बैठी है, घर में घी, तेल, नून और ईंधन का नाम नहीं, लड़की सयानी हो गई है, उसके विवाह की चिन्ता है, लड़का अभी छोटा है इसलिये धन कमाने के लायक नहीं है। जीवन की विविध अवस्थाओं पर प्रकाश डालने वाले अन्य भी अनेक सजीव चित्रण यहाँ पर भरे पड़े हैं। हाथी पकड़ने की विधि और घोड़ों के लक्षण आदि का यहाँ उल्लेख है।
मंत्रशास्त्र जान पड़ता है कि प्राकृत कथा-साहित्य के इस युग में, विशेषकर ईसवी सन् की ११ वी-१२ वीं शताब्दी में मंत्र-तंत्र, विद्या-साधना तथा कापालिक और वाममार्गियों का बहुत जोर था, और वे श्रीपर्वत से जालंधर तक घूमा करते थे। उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में सिद्ध पुरुषों का उल्लेख किया है जिन्हें अंजन, मंत्र, तंत्र, यक्षिणी, जोगिनी, राक्षसी और पिशाची आदि देवियाँ सिद्ध थीं। धातुवादी धातु को जमीन से निकालकर खार के साथ उसका धमन करते थे, क्रियावादी जोग-जुगति का आश्रय लेते थे, और नरेन्द्र रस को बाँधते थे। नरेन्द्रों की नागिनी, भ्रमरी आदि भाषाओं का उल्लेख है।