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नव्य बृहत्क्षेत्रसमास
३४७ धातकीखंड, कालोदधि और पुष्करार्ध इन पाँच प्रकरणों में द्वीप और समुद्रों का वर्णन है ।'
नव्य बृहत्क्षेत्रसमास इसके कर्ता सोमतिलक सूरि हैं। इसमें ४८६ गाथायें हैं । इस पर गुणरत्न आदि विद्वानों ने वृत्तियाँ लिखी हैं।
__ लघुक्षेत्रसमास ___ इसके कर्ता रत्नशेखरसूरि हैं। विक्रम संवत् १४६६ (सन् १४३६) में इन्होंने षडावश्यकवृत्ति की रचना की थी। इसमें २६२ गाथायें हैं जिन पर लेखक की स्वोपज्ञ वृत्ति है। आजकल लघुक्षेत्रसमास का ही अधिक प्रचार है। अढाई द्वीप का इसमें वर्णन है।
श्रीचंद्रीयसंग्रहणी इसके कर्ता मलधारि हेमचन्द्र के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि हैं । इसमें ३१३ गाथायें हैं जिन पर मलधारि देवभद्र ने वृत्ति लिखी है।
समयसारप्रकरण इसके कर्ता देवानन्द आचार्य हैं, स्वोपज्ञ टीका भी उन्होंने लिखी है। इस प्रकरण में दस अध्यायों में जीव, अजीव, सम्यग्दर्शन, सम्यगज्ञान आदि का प्ररूपण किया गया है।
षोडशकप्रकरण यह रचना हरिभद्रसूरि की है जिस पर यशोभद्रसूरि और
१. गणित के नियमों आदि में बृहत्क्षेत्रसमास और यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ति में समानता के लिये देखिये तिलोयपण्णत्ति की प्रस्तावना, पृ० ७५-७।
२. आत्मानन्द जैनसभा, भावनगर द्वारा वि० सं० १९७१ में प्रकाशित । __३. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार द्वारा सन् १९११ में प्रकाशित ।