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प्राकृत साहित्य का इतिहास
वैराग्यरसायनप्रकरण इसके कर्ता लक्ष्मीलाभ गणि' हैं। १०२ गाथाओं में यहाँ चैराग्य का वर्णन है।
व्यवहारशुद्धिप्रकाश इसके कर्ता रत्नशेखरसूरि हैं ।२ इन्होंने इस ग्रन्थ में आजीविका के सात उपाय, पुत्रशिक्षा, ऋणसम्बन्धी दृष्टान्त, परदेशगमनसम्बन्धी नीति, व्यवहारशुद्धि, मूर्खशतक, परोपकारी का लक्षण, इद्रियस्वरूप आदि व्यावहारिक जीवन से सम्बन्ध रखनेवाली बातों का विवेचन किया है।
परिपाटीचतुर्दशकम् । इसके कर्ता उपाध्याय विनयविजय हैं। इन्होंने अष्टापदतीर्थवन्दन, सम्मेतशिखर-तीर्थवन्दन, शत्रुजय-तीर्थवंदन, नन्दीश्वरद्वीप-चैत्यवन्दन, विहरमान-जिनवन्दन, विंशति जाततीर्थवन्दन, भरत-ऐरावत-तीर्थवन्दन, १६० जिनवन्दन, १७० जिनवन्दन, चतुर्विंशति त्रितयवन्दन आदि चौदह परिपाटियों का विवेचन किया है। ___ इसके अतिरिक्त अभयदेवसूरि के वंदणयभास (बृहवंदन भाष्य), जीवदयापयरण, नाणाचित्तपयरण, मिच्छत्तमहणकुलय और दंसणकुलय आदि कितने ही जैन आचार के ग्रंथ हैं जिनमें आचारविधि का वर्णन किया गया है।
१. देवचन्दलाल भाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला में ईसवी सन् १९४१ में प्रकाशित।
२. हर्षसूरि जैन ग्रंथमाला, भावनगर की ओर से वि० सं० २००६ में प्रकाशित।
३. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर की ओर से वि० सं० १९८४ में प्रकाशित।
४. ये लघुग्रंथ ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम की ओर से सन् १९२९ में प्रकाशित सिरिपयरणसंदोह में संग्रहीत हैं। क्रियासंबंधी अन्य ग्रंथों के लिए देखिये जैन ग्रन्थावलि, पृ० १४८.५४ ।