________________
३४० प्राकृत साहित्य का इतिहास की थी।' इस पर स्वोपज्ञवृत्ति भी इन्होंने लिखी है। यहाँ ३२३ गाथाओं में बिम्बप्रतिष्ठा, वन्दनकत्रय, संघ, मासकल्प, आचार और चारित्रसत्ता के ऊपर विचार किया गया है ।
द्वादशकुलक इसके कर्ता अभयदेवसूरि के शिष्य जिनवल्लभसूरि (स्वर्गवास विक्रम संवत् ११६७= ईसवी सन् १११०) हैं। जिनपालगणि ने इस पर विवरण लिखा है। यहाँ सम्यग्ज्ञान का महत्व, गुणस्थानप्राप्ति, धर्मसामग्री की दुर्लभता, मिथ्यात्व आदि का स्वरूप और क्रोध आदि अंतरंग शत्रुओं के परिहार का उपदेश दिया है।
पञ्चक्खाणसरूव (प्रत्याख्यानस्वरूप) इसके कर्ता यशोदेवसूरि हैं जिन्होंने विक्रम संवत् ११८२ (ईसवी सन् ११२५) में इसकी रचना की है। स्वोपज्ञवृत्ति भी उन्होंने लिखी है। इसमें ४०० गाथाओं में प्रत्याख्यान का स्वरूप बताया है।
चेइयवंदणभास इस भाष्य के कर्ता शान्तिसूरि हैं जिन्होंने लगभग ६०० १. हेमचन्द्राचार्य ग्रंथावलि में वि० सं० १९८४ में प्रकाशित ।
२. जिनदत्तसूरि प्राचीनपुस्तकोद्धार फंड ग्रंथमाला की ओर से सन् १९३४ में बम्बई से प्रकाशित ।
३. ऋषभदेव केशरीमल जी संस्था की ओर से सन् १९२७ में प्रकाशित ___४. शांतिसूरि नाम के कई आचार्य हो गये हैं। एक तो उत्तराध्ययनसूत्र की वृत्ति के कर्ता थारापदगच्छ के वादिवेताल शांतिसूरि हैं जो वेबर के अनुसार वि० सं० १०९६ में परलोक सिधारे। दूसरे पृथ्वीचन्द्रचरित्र के कर्ता शांतिसूरि हैं जिन्होंने वि० सं० १९६१ में इस चरित्र की रचना की। ये पीपलियागच्छ के संस्थापक माने गये