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३२६ प्राकृत साहित्य का इतिहास के प्रशिष्य थे। भट्टारक ज्ञानभूषण की भाँति भट्टारक शुभचन्द्र भी बहुत बड़े विद्वान् थे। वे त्रिविधविद्याधर (शब्द, युक्ति और परमागम के ज्ञाता) और षटभाषाकविचक्रवर्ती के नाम से प्रख्यात थे। गौड, कलिंग, कर्णाटक, गुर्जर, मालव आदि देशों के वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित कर उन्होंने जैनधर्म का प्रचार किया था।
कल्लाणालोयणा कल्याणालोचना के कर्ता अजितब्रह्म या अजितब्रह्मचारी हैं। इनका समय विक्रम की १६वीं शताब्दी माना जाता है। इनके गुरु का नाम देवेन्द्रकीर्ति था, और भट्टारक विद्यानन्दि के आदेश से भृगुकच्छ में इन्होंने हनुमच्चरित्र की रचना की थी। यह ग्रन्थ ५४ गाथाओं में समाप्त होता है ।
ढाढसीगाथा इसके' कर्ता कोई काष्ठसंघी आचार्य हैं । १६वीं शताब्दी के श्रुतसागर सूरि ने षट्पाहुड की टीका में इस ग्रन्थ की एक गाथा उद्धत की है। ग्रंथकर्ता के सम्बन्ध में और कुछ विशेष पता नहीं चलता | ढाढसीगाथा में ३८ गाथायें हैं। हिंसा के सम्बन्ध में कहा है
रक्खंतो वि ण रक्खइ सकसाओ जइवि जइवरो होइ। मारंतो पि अहिंसो कसायरहिओ ण संदेहो ।।
-यदि कोई यतिवर कषाययुक्त है तो जीवों की रक्षा करता हुआ भी वह जीवरक्षा नहीं करता। तथा कषायरहित जीव जीवों का हनन करता हुआ भी अहिंसक कहा जाता है, इसमें सन्देह नहीं।
1. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रंथमाला द्वारा वि० सं० १९७७ में प्रकाशित तत्वानुशासनादिसंग्रह में संगृहीत हैं।