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________________ ३२० प्राकृत साहित्य का इतिहास शान्ति आचार्य थे, उनके शिथिलाचारी शिष्य जिनचन्द्र ने इस धर्म को प्रवर्तित किया। इस मत में स्त्रीमुक्ति और केवलीभुक्ति का समर्थन है। इसके पश्चात् विपरीतमत (ब्राह्मणमत) और वैनायिकमत की उत्पत्ति बताई है। महावीर भगवान के तीर्थ में पार्श्वनाथ तीर्थंकर के संघ के किसी गणी के शिष्य का नाम मस्करी पूरन' था, उसने अज्ञानमत का उपदेश दिया । इसके बाद द्राविड़, यापनीय, काष्ठा, माथुर और भिल्लक संघों की उत्पत्ति का कथन है। देवसेन ने उन्हें जैनाभास कहा है। ___ पूज्यपाद (देवनन्दि) के शिष्य वज्रनन्दि ने विक्रम राजा की मृत्यु के ५२६ वर्ष पश्चात् मथुरा में द्राविड़ संघ चलाया | वज्रनन्दि प्राभृत-ग्रंथों के वेत्ता थे, उन्हें अप्राशुक (सचित्त) चनों के भक्षण करने से रोका गया, पर वे न माने ; उन्होंने प्रायश्चित्त-ग्रन्थों की रचना की। कल्याण नामक नगर में विक्रम १. बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार मंखलि गोशाल और पूरणकस्सप ये दोनों अलग व्यक्ति थे। २. इस ग्रन्थ में उल्लिखित द्राविड़ संघ की उत्पत्ति के समय को छोड़कर शेष संघों का उत्पत्तिकाल ठीक नहीं बैठता। इन संघों में आजकल केवल काष्टासंघ ही वाकी बचा है, शेष संघों का लोप हो गया है। कई जगह माथुरसंघ को काष्ठासंघ की ही शाखा स्वीकार किया है। कुछ आचार्यों ने काष्ठासंघ (गोपुच्छक) की श्वेताम्बर, द्राविड़ संघ, यापनीय संघ और निःपिच्छिक (माथुर संघ) के साथ गणना कर इन पाँचों को जैनाभास कहा है ( देखिये, भद्दारक इन्द्रनन्दिकृत नीतिसार )। यापनीय संघ को गोप्यसंघ भी कहा गया है। आचार्य शाकटायन इसी संघ के एक आचार्य थे। यापनीय संघ के अनुयायी स्त्रीमुक्ति और केवलीभुक्ति को स्वीकार करते थे। हरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चय पर गुणरत्न की टीका के चौथे अध्याय में दिगम्बर सम्प्रदाय के काष्ठा, मूल, माथुर और गोप्य संघों का परिचय दिया है। देखिये नाथूराम प्रेमी, दर्शनसार-विवेचना ; तथा 'जैन साहित्य और इतिहास' में यापनीयों का साहित्य नामक लेख ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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