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३०२ प्राकृत साहित्य का इतिहास
-जो योगी व्यवहार में सोता है वह स्वकार्य में जागृत रहता है, जो व्यवहार में जागृत रहता है वह स्वकार्य में सोता रहता है।
लिंगपाहुड में २२ और सीलपाहुड में ४० गाथायें हैं। सीलपाहुड में दशपूर्वी सात्यकिपुत्र का दृष्टान्त दिया है।
बारस अणुवेक्खा कुन्दकुन्द की बारस अणुवेक्खा (द्वादश अनुप्रेक्षा) में ६१ गाथायें हैं; यहाँ अध्रुव, अशरण आदि १२ भावनाओं का विवेचन है ।'
दसमत्ति ( दशभक्ति) दशभक्ति में तीर्थंकर, सिद्ध, श्रुत, चारित्र आदि की भक्ति की गई है। इसका अधिकांश भाग पद्य में है, कुछ गद्य में भी है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रतिक्रमणसूत्र, आवश्यकसूत्र और पंचसुत्त के साथ इसकी तुलना की जा सकती है। तित्थयरभत्ति तो दोनों सम्प्रदायों में समान है। दुर्भाग्य से दशभक्ति का कोई सुसंपादित संस्करण अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ। प्रभाचन्द्र के दशभक्तियों पर टीका लिखी है। उन्होंने पूज्यपाद
१. इसकी कुछ गाथायें मूलाचार के वें अध्याय की गाथाओं से मिलती-जुलती हैं, देखिये डॉक्टर ए० एन० उपाध्ये की प्रवचनसार की भूमिका, पृष्ठ ३९ का फुटनोट । कार्तिकेय ने भी कत्तिगेयाणुवेक्खा की रचना की है। इसी प्रकार भगवतीभाराधना में १५० गाथाओं में
और मरणसमाहीपइन्ना में ७० गाथाओं में बारह अनुप्रेक्षाओं का विवेचन किया गया है।
२. दोशी सखाराम नेमचन्द, शोलापुर द्वारा सन् १९२१ में प्रकाशित । पण्डित जिनदास पार्श्वनाथ न्यायतीर्थ ने इसका मराठी अनुवाद किया । महावीर प्रेस, आगरा से वि० सं० १९९३ में प्रकाशित क्रियाकलाप में भी यह संगृहीत है।