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प्राकृत साहित्य का इतिहास का व्याख्यान है। यहाँ द्रव्य का लक्षण, द्रव्य के भेद, सप्तभंगी, गुण और पर्याय, काल द्रव्य का स्वरूप, जीव का लक्षण, सिद्धों का स्वरूप, जीव और पुद्गल का बंध, पद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल के लक्षण का प्रतिपादन किया है। दूसरे श्रुतस्कंध में नौ पदार्थों के प्ररूपण के साथ मोक्षमार्ग का वर्णन है। पुण्य, पाप, जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष का यहाँ कथन है। ___ प्रवचनसार' आचार्य कुन्दकुन्द की दूसरी महत्वपूर्ण रचना है। इस पर भी अमृतचन्द्रसूरि और.जयसेन आचार्य की संस्कृत में टीकायें हैं । इस ग्रन्थ में तीन श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञान, द्वितीय तस्कंध में ज्ञेय और तृतीय श्रुतस्कंध में चारित्र का प्रतिपादन है। इसमें कुल मिलाकर २७५ गाथायें हैं। ज्ञान अधिकार में आत्मा और ज्ञान का एकत्व और अन्यत्व, सर्वज्ञत्व की सिद्धि, इन्द्रिय और अतीन्द्रिय सुख, शुभ, अशुभ, और शुद्ध उपयोग तथा मोहक्षय आदि का प्ररूपण है । ज्ञेय अधिकार में द्रव्य, गुण, पर्याय का स्वरूप, सप्तभंगी, ज्ञान, कर्म और कर्मफल का स्वरूप, मूर्त और अमूर्त द्रव्यों के गुण, काल के द्रव्य और पर्याय, प्राण,शुभ और अशुभ उपयोग, जीव का लक्षण, जीव और पुद्गल का संबंध, निश्चय और व्यवहार नय का अविरोध और शुद्धात्मा आदि का प्रतिपादन है। चारित्र अधिकार में श्रामण्य के चिह्न छेदोपस्थापक श्रमण, छेद का स्वरूप, युक्त आहार, उत्सर्ग
और अपवादमार्ग, आगमज्ञान का महत्व, श्रमण का लक्षण, मोक्ष तत्व आदि का प्ररूपण है। 'व्यवहारसूत्र में कुशल श्रमण के पास जाकर आलोचना करने का विधान है (२१२)। हिंसा का लक्षण बताते हुए कहा है
१. डॉक्टर ए० एन० उपाध्ये द्वारा संपादित; रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला में सन् १९३५ में प्रकाशित ।
२. यह सूत्र श्वेताम्बरों के यहाँ मिलता है, इसका परिचय पहले दिया जा चुका है।