________________
आवश्यकटीका
२६३ बहुत करता। दासियों ने यह बात रानी से जाकर कही। रानी उसी की दुकान से सामान मंगवाने लगी। एक दिन इभ्यपुत्र ने दासियों के सामने कुछ पुड़िया में रखते हुए कहा"ऐसा कौन है जो इन बहुमूल्य सुगंधित पदार्थों की पुड़ियाओं को खोल सके ?” दासियों ने उत्तर दिया-"हमारी रानी इन्हें खोल सकती है।" इभ्यपुत्र ने एक पुड़िया में भोजपत्र पर निम्नलिखित श्लोक लिख दिया
काले प्रसुप्तस्य जनार्दस्य, मेघांधकारासु च शर्वरीषु । मिथ्या न भाषामि विशालनेत्रे ! ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥
-कामेमि ते (प्रत्येक चरण के प्रथम अक्षर मिलाकर) अर्थात् मैं तुझे चाहता हूँ | दासियाँ पुड़ियाओं को रानी के पास ले गई। रानी ने श्लोक पढ़ कर विषयभोगों को धिक्कारा । प्रत्युत्तर में उसने लिखा
नेह लोके सुखं किंचिच्छादितस्यांहसा भृशम् । मितं च जीवितं नृणां तेन धर्मे मतिं कुरु ॥
-नेच्छामि ते (प्रत्येक चरण का प्रथम अक्षर मिला कर) • अर्थात् मैं तुझे नहीं चाहती।
(४) कोई वणिक् अपनी दो भार्याओं (यहाँ दूसरी कथा में दो भाइयों के एक ही भार्या होने का भी उल्लेख है, पृ० ४२०) के साथ किसी दूसरे राज्य में रहने के लिये चला गया । वहाँ जाकर उसकी मृत्यु हो गई। उसकी एक भार्या के पुत्र था लेकिन वह बहुत छोटा था । पुत्र को लेकर दोनों सौतों में झगड़ा होने लगा। जब कोई निर्णय न हो सका तो मन्त्री ने कहा, रुपये-पैसे की तरह लड़के को भी आधा-आधा करके दो भागों में बाँट दो। यह सुनकर लड़के की असली मां कहने लगीमेरा पुत्र इसी के पास रहे, उसे मारने से क्या लाभ ? अन्त में वह पुत्र उसी को मिल गया ! |